आकाशगर्भनामाष्टोत्तरशतस्तोत्रम्
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आकाशगर्भनामाष्टोत्तरशतस्तोत्रम्
ॐ नमो बुद्धाय
आकाशगर्भ सत्त्वार्थ महासत्त्व महाद्युते।
महारत्न सुरत्नाग्र्य वज्ररत्न नमोऽस्तु ते॥ १॥
अभिषेकमहारत्न महाशुद्ध महाशुभ।
बुद्धरत्न विशुद्धाङ्ग रत्नरत्न नमोऽस्तु ते॥ २॥
आकाशाकाशसंभूत सर्वाकाश महानभ।
आकाशधातुसर्वाश सर्वाशाग्र्य नमोऽस्तु ते॥ ३॥
रत्नसंभव रत्नोर्ण बुद्धोर्ण सुतथागत।
सर्वरत्न सुसर्वाग्र्य रत्नकार्य नमोऽस्तु ते॥ ४॥
रत्नरत्नाग्र्य रत्नोग्र रत्नसर्व तथागत।
रत्नोत्तम महाकाश समाकाश नमोऽस्तु ते॥ ५॥
अलङ्कारमहाशोभ शोभाकर सुशोभक।
शुद्धसर्वार्थ शुद्धार्थ दानचर्य नमोऽस्तु ते॥ ६॥
धर्मरत्न विशुद्धाग्र्य सङ्घरत्न तथागत।
महाभिषेक लोकार्थ प्रमोदार्थ नमोऽस्तु ते॥ ७॥
दान प्रदान दानाग्र्य त्याग त्यागाग्र्य दायक।
सर्वसत्त्वार्थ तत्त्वार्थ महार्थार्थ नमोऽस्तु ते॥ ८॥
चिन्ताराज महातेज दानपारमितानय।
तथागत महासत्त्व सर्वबुद्ध नमोऽस्तु ते॥ ९॥
तथागत महारत्न तथागत महाप्रभ।
तथागत महाकेतो महाहास नमोऽस्तु ते॥ १०॥
तथागताभिषेकाज्ञ महाभिषेक महाविभो।
लोकनाथ त्रिलोकाग्र्य लोकसूर्य नमोऽस्तु ते॥ ११॥
रत्नाधिकाधिकतर रत्नभूषण रत्नधृक्।
रत्नालोक महालोक रत्नकीर्ते नमोऽस्तु ते॥ १२॥
रत्नोत्कर सुरत्नोत्थ मणे वज्रमणे गुण।
रत्नाकर सुदीप्ताङ्ग सर्वरत्न नमोऽस्तु ते॥ १३॥
महात्मयष्टि रत्नेश सर्वाशापरिपूरक।
सर्वाभिप्रायसंप्राप्तिरत्नराशि नमोऽस्तु ते॥ १४॥
अभ्वग्र्य व्यापि सर्वात्म वरप्रद महावर।
विभूते सर्वसंपत्ते वज्रगर्भं नमोऽस्तु ते॥ १५॥
यः कश्चिद् धारयेन् नाम्नामिदन्तेऽष्टशतं शिवम्।
सर्वबुद्धाभिषेकं तु स प्राप्नोत्यनघः क्षणात्॥ १६॥
श्री आकाशगर्भनामाष्टशताध्येषणास्तोत्रं संपूर्णम्।