Digital Sanskrit Buddhist Canon

चर्या संग्रहः

Technical Details
  • Text Version:
    Devanagari
  • Input Personnel:
    Miroj Shakya
  • Input Date:
    2019
  • Proof Reader:
    Miroj Shakya
  • Supplier:
    Nagarjuna Institute of Buddhist Studies
  • Sponsor:
    University of the West
  • Other Version
    N/A

चर्या संग्रहः


(1) 


१. (NC. 23 no. song)


ओं नमः श्रीचक्रसम्वराय

ओं नमो श्रीवज्रवाराह्यै

सिस्माभतया चचा कन्थजुल


रागः अहेदि (आहेरि)  ताल : माथ


होडाभरणे (हाडाभरण) क्रियायि रे सम्वर धरयि धरयि कंवाछरि

(कपालि) रे व्येशा (वेशा)

तुह्मे वोरन्ते मण्डिया मुशाने (मशाने) मुकुट केश दिगम्वरा॥

[ध्रू.॥] रे रे रे मोरु सम्वर राय (लेया) समरसुन्दरि (सुन्दरी) मोरु कोला

हम विराहिनी वज्रवाराहि (वज्रवाराही) फेडमहि (भेदनहि) रे मोरु

शाला॥

शारिं (शालिं) भोजयेने वलंसुह मयने कप्पुर भव-इ तवोरा

(तम्वोला)

गगण निलवर्ण (नीलवर्ण) वंन्धि (वन्धि) जोदा (जाडा) मेरुमण्डल

भवरीना (भवलीना)॥


(2) 


त्रियं षडषट हूँ छादिगोर (छाडिजेल) सम्वर प-इसयि (प-इरा-इ) शुन्य

भट्टारा

हमविराहिनी (हमविरहिनी) वज्रवाराहि (वज्रवाराही) तुम्ह विनु देयमि

(देखमि) अन्धारा॥

गावंन्ती (गावन्ति) लीलावज्र ज्वलिया उरे शतगुरुः चरण आराध्य

समयानन्दे स्फरिया मण्डल सम्वर वज्रवाराहि (वज्रवाराही)॥


2. (NC. 33 no. song)


राग : विभास                     ताल : omits (NC. & NP. reads माथ)


धर धरहु धरा धराधरे धारय धारय चक्रसिरे (चक्रशिरे)

मर्दन मर्दन वज्रधृक समय कुन्दुरु योग्य (योग) सुविर वरे (सुवीर वरे)॥

कुरु कुरु वज्रधर समय त्वं आलोलिकं कर्णवोले (कर्णवरे)


(3)


कुण्डल कुण्डले देहधरु सुसमाक (सुषुम्ना?) चित्तकमल धरे॥

वज्र शुर्य्य (सूर्य) आग्यान (आज्ञान) ततो (तमो) सोविध मय सदतोमहं

रत्नाधक वल (वरे) वज्रगिरे कण्ठी कण्ठक माल धरे (कण्ठे कण्ठक माल धरे)॥

सास्यत (शाश्वत) निस्वभाव परम सास्वत (शास्वत) सहज स्वभाव धरे

एहहि जिनजिक समय कायनिवन्धन लोचक वरे (रोचक वरे)॥

हूँ ह्रिँ (हीं) प्रग्याधृक) समय मेखल मण्डित प्रनव (प्रणव)

सुखे

हूँ फट आदिल (आदिन) चरण चले (वरे) प्रणमामि शुरतवज्रगिरा

(सुरतवज्रगीत वरे)॥


(4)


3. ( NC. not collect this song)


राग: omits    ताल: एकताल


ओं नमो श्रीपद्मनृत्येश्वराय।

ओं नमो श्रीचक्रसम्वराय।


भसे (विश्व) वह्माद (व्रह्माण्ड) खण्डग्रह लविशसि (रविशशि)

भृट्टारकामरुशृङ्गं

भ्रामेक्चिक्र (भ्रामेदिचक्र) वादं (वातं) प्रकृति परिभव-इ तत्सुकाकाश रौद्रा

मर्ज्जत स्येलेन्द्र (शैलेन्द्र) विन्द्रावन (वृन्दावन) सशि (शशि) ललितं

सागरं ताद्रव व्ये ( ताण्डव वेशा )........

हस्ता हूँ क्षत्रपाते भवतु भगवतः पद्मनृत्येस्वरस्यं ( पद्मनृत्येश्वरस्यं )॥

अपिचापा ( अपिच पाशा ) संशार ( संसार ) चक्र विरचयंति मनासन्ति योगा

महेतो

साधित स्येत्प्रसादा-इ ( श्वेतप्रसादाय ) विमति निजभुवे स्वामिना निष्प्रस्य

तञ्च प्रत्याभवेध्य समुदयति सुखकल्पनाजालमुक्तं कुयी-इ तस्यधिपद्मं

शिरसि विनयं सतगुरु सर्वदाकालं॥


(5)


4. (NC. not collect this song)


राग: ताल omits  NP. mentioned राग : अन्धारभैरवि (गन्धारभैरवि)


ओं नमो श्रीपद्मनृत्यश्वराय (नृत्येश्वराय )॥

ओं नमो श्रीचक्रसम्वराय॥

धर्मधातु जिन हृदयाःनन्दकालीका (कालिका)॥

जगदालोक लोचनो॥

कमलासनस्थ सशि (शशि ) वर्णधराः कलंकमला॥

सहजानन्दकालिका

निखिलं जिनहृदयाः ल्हादसुंदरा (सुन्दरा)॥

नर्त्तते (नर्तते) मंजुकुमारा (मञ्जुकुमारा)॥


5. (NC. 34 no. song)


राग : अन्धारि (गन्धारि) [NC. & NP mentioned गन्धारभैरवि]

ताल : omits [NC. & NP. mentioned चप्पलि]


विश्वसरोरुह विधुविम्वा

मोकार (ओंकार ) वियापितमुसंभवा ( सुसम्भवा )॥

नमामि नमामि वागिश्वर (वागीश्वर ) सयर (सकल ) मुनिहृदया


(6)


विराशयि ( विलास-इ ) कुजंगार (कुटागार ) मनोहर स-अल (सकल)

जिनहृदय॥

पितनिरारूण (पीतनीलारुण) सितवयने

पंच (पञ्च) जिनमुकुट मणिरयनं॥

सुरासुर नमित वरचरणा

भनयि परमादिवज्र जिनगुणरयनं॥


6. (NC. 62 no. song)


राग : गन्धारभैरवी          ताल : झाप


हरसिर (हरशिर ) मुकुट किरन्ति मणि भाश्वर (भास्वर )

चरणजुगे


(7)


ध्रू.॥ स्वहिय वज्रसत्व परमेश्वर परमपदं॥

गान्धासुनि वहु पिथनु कण्ठ (वेकण्ठ ) देहधरु

चालितु फुरण संवारितु गुह्यकण्ठ कलम जुगे॥


7. (NC. 5 no. song)


राग : भैरवी   ताल: (NP. reads सनि)


ए महि मण्डल मेरु समुद्रा

जनधन जडभन (जडवन ) उदक चन्द्रा॥

प्रेखुरे (पेखुरे ) अनुस्मिन (अनुदिन ) लोचन गयेन

स्फुल (फुल्ल ) परिहास-इ जिनगुण लाया


(8)


कण्ठेधारि ( स्कन्धधारि ) इन्द्रिय विषय सर्व-एका

समुद्र तरङ्ग जिन एकु अनेका॥

पवन दुयि भेदिया दृध (दृढ) षिरे (थिरे) चिया

ज्वलयि (ज्वल-इ ) वज्रानर (वज्रानल ) दहदिह ( दशदिश ) दाह॥

सुगतमणि भवयिया नहायिल ( न हो-इ रे ) स्वधा

सुरतवज्र भनयिया (भण-इ ) अचिन्तालय वोधा॥


8. (NC. 54 no. song)


राग : गन्धारभैरवी             ताल : झाप


त्रीभुवन (त्रिभुवन) ज्वलित मुरुति अनुरायन विनयवतिं (विनयवति)


(9)


ध्रू.॥ नाचैरे वज्रसत्व परमेश्वर रिण्यवतिं (लीनवति)॥

रस्मि सहस्र दश सुर्य सहस्रवति

वहुविहर (वहूविध ) रूप रविशशि अनुरायने (अनुरागेन ) सत्ववतिं॥


9. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी ताल: एकताल


अकाल संजात पृथिवन इन्द्र शिलिष (शिरिष) पादपं असिताण

(असिताङ्ग) भैरवा

वध्मापति (व्रध्मापति ) पिता वासुकिनागा चण्डोग्र भिषमा (मीषणा ) घुर्नित 

जलदा॥


ध्रू.॥ ओं गणपतिकुमार महाकार (महाकाल ) क्षेत्रपाल योगिनिगणा

मद्यमांस मत्स्य पंचविध (पञ्चविध ) पुजनि गृहतु (गृह्णन्तु ) खादन्तु पिवन्तु

रे॥

कवर्गजाते नदिनित धनदे पिप्पर (पिप्पल ) पादपं पचंन्द्र (प्रचण्ड ) भैरवा

रुद्रायनि (रुद्रानि) श्वेता तक्षकनागा गनधरस (गम्भीर) सश्मान

(श्मशान) गर्जित जलदा॥

चवर्गजाते विहार वरुणे अश्वक पादपं रुरुक भैरवा

इन्द्रायनि कुंकुमा कक्कोटक (कर्कटक) नागा ज्वालाकुला नादित

जलदा॥


(10)


टवर्गजाते पर्वतसमने चुतकपादपं कपिल भैरवा

वाराहि रक्तपद्म भुजङ्गा (भूजङ्गा ) कुरक भैरवा वर्तन जलदा॥

तवर्ग जाते एकवृक्षाग्रौ करङ्ग पादपं क्रोधभैरवा

कौमारि रक्ता महापद्मनागा अढुतहासा प्रचण्ड जलदा॥

पवर्गजाते मातृगृहादाजत पक्कोटि पादपं उन्मत्त भैरवा

वैष्णवि श्यामा अनन्तनागा लक्ष्मिवन हूतासन पुरणजलदा॥

यवर्गजाते सुन्य (शुन्य) गृहवातं अर्जुनपादपं संहार भैरवा

चामुण्डा रग्ता (रक्ता) कुलिकनागा घोन्दाकारा (घोरान्धकार )

वर्तनजलदा॥

शवर्गजाते अरण्ये ईशाने वर्तकपादपं भिषणा (भोषणा ) भैरवा

महालक्ष्मि (महालक्ष्मी ) श्वेता शंखपालनागा किलिकिलि लावावर्षण

जलदा।

कामोदा भैरवकालिपाद भरणा द्वादशनयना आलिङ्गचरणा

वेदवदनं रविकरवदनं नमामि श्रीहेरुक भवभयहरणं॥


10. (NC. not collect this song)


राग: कामोद ताल: खदकंकाल


त्रियंत्रिशनाथ क्रियायि रे शचिपति

गच्छ स्वभुवने इहनहि तिष्ठ॥

श्वविकेशरा जालं ध्युयि अधुना

हमनहि वोले पांशु मिव करणं॥


जषुभुवनेश्वरन (जयभुवनेश्वर ) तिष्ठन्तु तुह्मकिं

अहंक्रोध आपन्तु छेदनं करणं॥


(11)


पुण्यजनराजा अहं करुणामय

हमभुज दिक्षन्तु अशिचन्द्र हासा॥


उरुङ्गाधिपति पलायन्तु सद्य

वज्रपाशवन्ध घाटनकरणं॥

समिरणामतेजगच्छतस्थानं

हम-एक तिष्ठति अह नहि दोषं॥


यक्षगणराजा गच्छ लंकापुलि (लंकापुरी )

नाथहेरुव आग्या (आज्ञा ) वन्धनकरणं॥

रुद्रगणेश्वर नरविघ्नकृत शक्ती (शक्ति )

नाथस्या आज्ञा मापन्तु लाजवन्तु युपं॥


अर्द्ध उर्द्धभुवनेनाथ बह्मा (ब्रह्मा) व्योमचिन्ता

खड्गा घोद्ध्र विष्मत्ति भष्ममिवकरणं॥

बुद्धवरणाम अहं क्रोधलाया

दशदिगस्थिता मार त्राशन करोमि॥

वाच्छलि चरणे भुजत धरिया

गावन्ति कुलिशश्री गीत चरणा॥


11. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी ताल: झाप


ओं खवज्र कुवज्र हूँकारा रे कारि (कालि ) रात्रि रिपु चापयिया रे॥

स्फलयि ( स्फरयि ) अनन्तर महाक्रोधारे अलपिय विघ्न समुहर रे॥


(12)


घ घ घातय घातय सर्वदुष्ट रे कीलय हूँ फट पापहर रे॥

ओं वज्र किलय वज्रधर आग्या (आज्ञा ) कायवाकचित्त किलयन्ति॥

श्रीवज्रसत्व आराधिया रे अनुत्तरसिद्धिप्रद मोक्षफलद॥

पुर्वादिद्वारे काकानरे ( काकानन रे) भिन्नजन ध्युति (द्युति) घोररूपा॥

चण्डोग्र मिषण (भीषण) महाश्मशाना रे देवाधिपतिगण किलयन्ति॥

उत्तरदिगद्वारे उलुकान रे (उलुकानन रे) श्यामवणीतु भिम नयनि॥

रौद्रगकर श्मशाना रे यक्षाधिपति गगण किलयन्ति॥

पश्चिमदिगद्वारे श्मशानन रे सिधुरारूणतनु विकटरूपा॥

ज्वालाकुल महाश्मशाना रे भुताधिपतिगण किलयन्ति॥

दक्षिणदिगद्वारे सुकरानन रे (शुकरानन रे ) कनकनिभेद देहा घघरनादि॥

कलंकभैरवमहाश्मशाना रे प्रेताधिपतिगण किलयन्ति॥

दक्षिणवरकोणे देवि (देवी ) यमदादि कृष्णपीताभा प्रचण्डरूपा॥

अटुटहास महाश्मशाना रे तेजाधिपतिगण किलयन्ति॥

द्वितिय (द्वितीय) वरकोणे यमद्युतिरे पितारूण तनु क्रोधरूपा॥

लक्ष्मीवन हूतासनमहाश्मशाना रे रक्षसाधिपतिगण किलयन्ति॥

वायुदेवकोणे (वायुदेववरकोणे) देवि (देवी) यम द्रंष्टि ये (रे) रग्त (रक्त)

श्यामतनु कलाल (कराल) वदनि॥

घोरान्धकार भिषन (भीषन) महाश्मशाना रे वाताधिपतिगण किलयन्ति।

ईशानवरकोणे देवि (देवी) यममथनि ये (रे) श्यामकृष्णाभा विकटरूपा॥

रौद्रकिलिकिलारव महाश्मशाना रे भूताधिपतिगण किलयन्ति॥

उष्णीषचक्रवर्ती उर्द्ध सस्थिता मारविघ्नहर (हरण) पित (पीत) देहा॥

ब्रह्मारविशशिगण सपर खेचरमारगण किलयन्ति॥

सुम्भराजे क्रोधे अतिनीलमुरति पातार (पाताल) वासिनीमारहरणं॥

पृथ्वी असुरगण शेषनागादिकं भूचरमारगण किलयन्ति॥

देहदिह (दशदिश) दाह हूँकारा रे प्रणमामि दशमहाक्रोधारे॥

आसा (आशा) परिपुरयदानपति रे मारविघ्न निरवारु रे॥


(13)


12. (NC. 24 no. song)


राग : कामोद ताल: खदकंकाल


प्रज्वलित हूँकारोद्भवमुरति इन्द्रनिलाभ ध्युति (द्युति ) देहा।

विश्वावजस्थित शृष्ठि (सृष्ठि ) करणं रत्नमकुट क्रोधाधिपं॥

ध्रू.॥ नमामि श्रीप्रचन्डवीरं भवसिन्धुर करणं

विश्वनाथ त्रिभुवन व्यापितं वेदारिध्वंशनकरणं (ध्वंसन करणं )॥

अनन्तजानुस्थित त्रिभुवनवीरं सव्ये त्रिह्न (तीक्ष्ण) खङ्गद उधानं

वामतर्जनि हृद्धिपाशधरं भवारिदासन (त्रासन) वन्धनकरणं॥

नानारत्नाहार नोपुरा कति (कटि) मेखरा (मेखला) भूषितदेहा

द्रंष्टाकरार (कराल) भिषमं (भीषण) वदनं त्रिभुवनलाया (यया)

प्रचण्डवीरा॥

वीराधिपतिसर्वभयहरणं प्रेतपिशाचादिशान्तनमनशा (मनसा)

सुरनरयः आदिवंदित (वन्दित) पादं सर्वसिद्धिमोक्षफलदं॥


13. (NC. not collect this song)


राग : होण्डार (हिन्दोल) ताल : माथ


हूँकार संजात इन्द्रनीलस (इन्द्रनीलसम) द्युति देहा

ज्वालाज्वलं समज्वाला समाकुलो॥


(14)


ध्रू .॥ जयंतु (जयतु) अचल अनेग (अनेक) मुरुति खड्गपाश वन्धारि

(करधारि)

जगतनाथ जगतदारित (पालित) महाक्रोधराया॥

अवनि निहित वामजानु घोरवदन त्रिलोचना

केकराक्षस भवभयंकरा अषिल (अखिल) विघ्नहन्ता॥

ब्रह्महरिहर मध्यमाया दर्पदहन शुविरा (सुवीरा)

द्रंष्टा निपीडितधर सद्यकिरण विघ्नहन्ता॥

विविधि रत्नाभरणभूषित दिव्यरत्नमौरि (मौलि)

जगतवाञ्छित सर्वसम्पति सिद्धिवरफलदायकं॥


14. (NC. 47 no. song)


राग: मधुमत (मधुमन्ती) ताल : दुर्जभान

प्रोमोदितदिदश (प्रमोदित द्वादश) भूमि सुन्दरिसम मेरुमण्डल संस्थित

लयना (नयना)

द्वादश भूज च-उक्दन सुसेभिता (सुशोभिता) वज्रवाराहि कण्ठ

आलिङ्गणा॥


ध्रू.॥ हूँ हूँ हूँ दहदि (दशदिश) स्फरण मार सयल सम्बोधिया रे

द्वंदा (द्वन्द्वा) आलिङ्गण अद्वय सभावे (स्वभावे) नाच-इ दाने (डाने)

श्रीसम्वरलाया॥


(15)


कुलिशघण्टगजचर्म त्रिशूला कर्तिडमरु शुभशोभिता

मर्ज पुरित कपाल खट्वाङ्गपाशपरशु ब्रह्मशिले (ब्रह्मशिरे) धरा॥

पञ्चजिनवर मुकुट आलंकृता षडमुद्राभरणविभूषिता

आलिकालि दु-इ आलिढ चापयि व्याघ्रचर्म्मनिवाश (वास) कृष्णतनु॥

नरशिल (नरशिर) मालालंव (मालालम्व) श्रीसम्वरा दिव्यचक्षु त्रिणि

करुणहृदया 

जन्मजन्ममरु तुजुपाय शरणा गावन्ति परमादिवज्र गीता॥


15. (NC. 57 no. song)


राग: भैरवी    ताल : झाप


मध्ये मेरुमहामणि कर्णकराजिते (कनकराजिते) पूर्वविदेहर जम्बूद्वीपं

उपर गोदा उत्तरकुरु भुवने पञ्चवर्ण पञ्चजिन व्यापिया रे॥

ध्रू.॥ नमे (नमो) पञ्चबुद्धं विश्वशृजित (सृजित) विश्वहृत (विश्वहित) विश्वामृत

पञ्चमुरुति

अष्टद्विपानला (अष्टदीपानल) वहंति जिनमानसा हरन्तुभयतिमिल (तिमिर)

घनघोररूपं॥

जातवेदनस्यया उपदिप (उपद्वीप) रो-उपद्विप (रौपद्वीप) रिजातुध्याने

स्वसन रा-उपद्विप (रौपद्वीप) च-उविदिगं भुने (भुवने) वा उपद्वीप

श्रीखण्डपरशु॥


(16)


दिरदवन प्राचिय नररुधिर शाचिय सप्त-अष्टादल चुम्बीया (चुम्बिया) रे

अवल (अवर) रा उपदिचिय सायकं चक्रमणिकुलनिधिनिखिल

वेदयन्ति॥

गुरुवरण तिवर (त्रिवर) सा भगति परिभावना मनकुसुम उदकपरि

सफलिपूजा

प्रणव परिभारथिय सप्तपरिभूषिता भवजलनिधि संतरनि सेतुभुतं॥


16. (NC. 16 no. song)


राग :  पटमंजलि (पटमञ्जरी)                       ताल : माथ


अनिल अनर (अनल) जलोजभुव (भुवन) माझे गुरुमण्डल चक्रलाया

(चक्रराया)

वज्रपञ्जल (वज्रपञ्जर) सरजालसंपरिभेदिरे (संपरिमेदिरे) गुरुमण्डल

चक्रलाया ( राया)॥


ध्रू.॥ डमरुक्षर-इया (खेल-इया) शुन्यकरुणा आलिङ्गण हेरुवक्षरिया (खेल-इया)

वजवाराहि (वज्रवाराहि) आलिङ्गण सम्वरक्षर-इया (खेल-इया)॥

छत्रिशवीरवीरेश्वर संजहि तहि तहि अष्टश्मशाने


(17)


अनुहत (अनाहत) सर्वदेव (शवदे) व (वज्र) षोडशदेवी भिरन्ति

(भिलन्ति) उभयन स्वभाव्ये॥

त्रिभुवन तुह्म एकु शयन भराण्ड त्रिभुवन तुह्म एकु विरविरा (वीरवीरा)

त्रिनि भुवन नव नात (नाटक) संप्रसारि रे फरिगेर (फलिगेल)

उभकाकार (एकाकार)॥

अहिनिशि सतगुरु वोरन्तु (वोलन्तु) राग छादिगेल (छडिगेल) भाव

अभावे

जन्ममरणभयबन्धन छादिगेर (छाडिगेल) भय (जय) मरु (मोर) अतिय

सहावे॥


17. (NC. 80 no. song)


राग : ललित                        ताल : झाप


अनुतर (अनुत्तर) तथता वंकार (एवंकार) संभावे (स्वभावे)

रत्नरूपचित्रित विचित्र-कलशं

ओं आः हूँकार वज्रामृतमुदक सप्तसंशेधित ज्ञानमृन्मयं॥


(18)


चण्डामृतरस (चन्द्रामृतरस) बोधिफलदायकं सर्वजिनव्यापित सहजकलशं

जगतमलशोधक शुन्यताकरुणाभावसंसार नाशन विरक्षरूपं॥

वज्रपरमाभय (वज्रोपमभय) गन्धावु (गन्धाम्बु) संयुक्त शङ्खशेधित

पञ्चपीयुषं

हूँकारमन्त्र पुष्पसंवद्य वज्रसंस्थापित विपात्रकलशं॥

घटमभ्यन्तर तप्तरूपभाव आकृष्य मन्दाकिणो (मन्दाकिनि) जलरूपं

झटिति साधारण देवताचक्र ज्ञानसत्वमानिय हृद्विजकलशं॥

पाद्यादि आचमन दानपुण्यसरं समयसत्व प्रवेशित विमलकलशं

महारागद्रवीभूय (भूत) बोधिचिय (चित्त) रूपं समयसत्व ज्ञानसत्व

एकीभुतं॥


18. (NC. 29 no. song)


राग : गन्धारभैरवी                        ताल : झाप


त्रिनि (तिनि) लोयन (लोचन) च-उ बह्मविहारां (ब्रह्मविहारा)

करहुँ प्रतिष्ठा मण्डल होमे॥

ध्रू.॥ होमे होम कर-इया हूँ हूँ नहि च-उमारा

रागद्वेषमोह वन्धि रे छादिरे ( छाडि आ)॥

प्रज्ञाघण्ट उपाय रे वज्रा

रवि शशि चाप-इ आचार्य वियथा (व-इठा)॥


(19)


वाम दहिन करे श्रुवारे (सुरा-इ) पात्र

ज्वरिय (ज्वलिय) वज्रानल आहूति दिना॥

कर्ण वोरन्ते (वोलन्ते) रे अभ्यन्तर होमे

वज्रपवन घणचिय संबोधा॥


19. (NC. 59 no. song)


राग : नाट                        ताल : जटि


रक्तवर्ण त्रिनि लोयन (लोचन) संन्दरि (सुन्दरी)

अष्टादश भूज प्रहन (प्रहरन) किरणे॥

ध्रू.॥ तुह्म देवि (देवी) वारुणि (वारुणी) मामकि देवि (देवी)

जगतप्रमोदित रे मयन सुरागे॥

आगमवेदपुराणे बखाणे

योगधर्म दिशा (दीक्षा) गुरु उपदेशे॥

पञ्चबुद्ध स्वरूपक जे तुह्म

सयोर (सयल) योगिनि माझे हेरुवन्तु हेरुव॥

सतगुरुचरण शिल्यं गत धरिया ( थिरे गत धरिया)

भन-इ वाकवज्र सुरश्वे (सुरहंस) रूपी॥


(20)


20. (NC. 36 no. song)


राग :  भैरवी                       ताल : त्रिहूरा (NP. त्रिहुला)


नमोहूँ अकार रूप धरु

स्वच्छविसत्व उर्ता धरु॥

ध्रू.॥ तेना हुँ हुँ तेना तेते हुँ हुँ हुँ॥

द्वन्द्वा आलिङ्गन (आलिङ्गण) योग धरु

वज्रघण्टमुद्रा धरु॥

धवर (धवल) सुशखुन (सुशंखुण) देह धरु

सरद सुसोहिय चन्द्र मरु॥

माया देह रिण (लीन) जगु

स्वहिय करुणा सत्व महुँ॥


21. (NC. 81 no. song)


राग : शृंगारमारश्री (शृङ्गारमालश्री)              ताल : माथ


त्रिचक्र रविशशि मण्डलमाझे स्थिति आनन्द मुरुति धरा

वज्रवाराही आलिङ्गण सम्वरा नानारश्मि महोज्वला (महोज्ज्वला)॥


(21)


ध्रू.॥ तेना हूँ हूँ तेना हूँ हूँ तेना तेते हूँ हूँ हूँ॥

नीलवर्ण चतुवक्र (चतुर्वक्त) प्रतिमुख त्रिनेत्रं परमानन्द मुरुति धरा

विश्वावज्र अर्द्धचन्द्र जटामकुट धरा हाडाभरण सुशोभिता॥

वजघण्ट (वज्रघण्ट) गजचर्म डमरु खट्वाङ्गे विरमानन्द मुरुति धरा

करति कपाल परशु पाश त्रिशुला ब्रह्मशिरधरा व्यार्घचर्म कटि वेष्ठिता॥

दिगं विदगं काकास्यादि यमडाकिनि देवी सहजानन्द मुरुति धरा

नमामि नमामि श्रीचक्रसम्वरा सतगुरुचरण आराधिता॥


22. (NC. 60 no. song)


राग : पञ्चम                         ताल : झाप


ज्वलित वज्रनर (वज्रानल) रवि शसि (शशि) कुंचित (कुञ्चित)

द्राव-इ ओंकार नादरूपी

कुन्दुरुयोगे त्रिभुवन रिणा (लीणा) प-इस-इ जिन शशि विन्दुरूपी॥

ध्रू.॥ परमानन्द मुरुति रूपधारि (रूपधारी) क्रोधाधिपश्रीमञ्जुश्रीवज्रा


(22)


ओं आ (आः) हुँ क्रोधाधिप श्रीमंजुवज्रा (श्रीमञ्जुवज्रा)॥

कुलिशकमलसंयोगे सहजानन्द पवन तरंग (तरङ्ग) सुरिन गति

त्रयमुख (त्रिमुख) षन्भुज (षटभूज) रत्नमुकुटधारिकृष्ण शितानन

(सितानन) दहिन वामे॥

इन्दु (इन्दु) मण्डलापरिवज्रपर्यंकासन (पर्यङ्कासन) कुंकुम (रूण तनु

प्रज्वलिता

वज्रखड्ग सर (शर) दहिनकर धारिवामे घण्टात्पल चापयि धारि॥

विचित्ररत्न आभरणभूषित स्फलयि (स्फर-इ) अनेग (अनेक) मूरुति रूप

शतगुरु (सतगुरु) चरणकमल प्रशादा (प्रसादा) नमामि परमामि

(प्रणमामि) लिलापदं (लीलापदं)॥


23. (NC. 40 no. song)


राग : धनाश्री                        ताल : जटि


सर्वाक्रान्ता महासुख क्षर च-उ आनन्द देहा

त्रिभुवन फलयि (स्फर-इ) महासुख राया चन्द्रसूर्य दु-इ भेरिया (भेदिया)

ध्रू.॥ न पापरिणा (लीना) न पुनरीणा (पूण्यलीना) त्रिभुवन एक स्वरूपी

सर्वविकल्प विध्वंशनि (विध्वंसनि) देवी अनुत्तरज्ञानवरदायनी


(23)


अमिताभ मण्डल वन्दीयारे स्थिति कल्पा नर मिव रूपधारी

करति (करटि) कपारा (कपाला) खट्वांग (खट्वाङ्ग) धारी प्रज्ञाज्ञान 

वरदेहा

दिगम्वर मुकुट केशि चक्रिकुण्डल कण्ठीधारी

रुचक मेखला पायलधारी ग्रीव्ये रूद्र नरशिल माला

सर्वतथागत जननी देवी विरहित भाव अभाव्ये (अभावे)

श्री वज्रयोगिनीचरण शिल्यगत (शिरगत) गावन्ति समरसवज्रा


24. (NC. 82 no. song)


राग : कामोद                        ताल : षटकंकाल


हुँ विज (वीज) सम्भव खसम देहा नवरस द्वात्रिंश लक्ष्मण धरा

द्वादशभूजा वेद वदना द्वादश वक्त्र रक्तनेत्रं

ध्रू.॥ नमामि श्रीत्रिचक्रेश्वर मारभय भवभयहरणं

चतुरविंशति पिठेश्वर (पीठेश्वर) छत्रिशं वीरवीरेश्वरा

च-उचक्र प्रदक्षिणि परिवृता देवी संपुट प्रज्वलित स्थिता


(24)


प्रज्ञासंपुट आलिकालि प्रदाक्रान्ता अतिसुन्दरा

द्वादशदेवी एकुभावा नमामि श्रीचक्रसम्वरा

शतगुरु (सतगुरु) चरणं सिल्यंगतं (सिरंगतं) धार्य भनयि गीत

श्रीवज्रकुलिशा


25. (NC. omit this song)


राग :  शृंगारमारश्री (शृङ्गारमालश्री)                       ताल : माथ


द्विभूज एकमुख रक्तवर्ण त्रिनेत्रा

मुकुट (मुकुट) केश दिगम्बरा॥

ध्रू.॥ तेना हूँ तेना हूँ हूँ

तेना तेते हूँ हूँ हूँ॥

वाम करोटक दहिने करोति

हाड आमरण सुसोभिता (सुशोभिता)॥

सूर्यमण्डल माझे ताण्डव मुरुति

वज्रमण्डित विभूषिता॥

शतगुरु (सतगुरु) चरण शिल्यगत (शिरगत) धरिया

वज्रवाराही तुजुपाय सरणा (शरणा)॥


(25)


26. (NC. 2 no. extra pada)


राग : तोडि                        ताल : माथ


कोलायिले (कोलायिरे) थिया वोला मुमुनि ले (रे) कनकोला

घनकपिथिहा-इ वज्र-इ करुण क्रिया-इ न कोला

ध्रू.॥ मलयजं कुन्दुरु वज्र-इ डिण्डि माता नहि वज्र-ई

तहि मरु खाजन गांधे मयेता पिव-इ न या-इ

हालेकालेसन (कालिंजन) पनया-इ दुणुरु (दुन्दुरु) वज्र नया-ई

च-उ सम कस्तुरि सिल्हा कर्पूर लोव नया-इ

मलयजं-इ धन (मलयंज धन) शालि जले स्तहि मरु खाजन या-इ

प्रेखु नक्षत्र करन्ते शुद्धाशुद्ध न मुन-इ

निलंसुह अंग (अङ्ग) चन्द्राव-इया तहि ज सुरा पानया-इ


27. (NC. 50 no. song)


राग : त्रावलि (तारावलि)                         ताल : (माथ)


सर्वबुद्ध विबुद्ध मण्डीता विश्वमालं (विश्वमार) छेदनि

वज्रयोगिनि वज (वज्र) मण्डीत कारघरा ( कालघरा) त्रिलोचनि॥

ध्रू.॥ नमामि वाछलि सिद्धियोगिनि गण मण्डीता

अष्टरिद्धि ( ऋद्धि) सर्वसिद्धि योगिनिगण मण्डिता॥

आदित्यमण्डल तेज समरस दिप (दीप) माल (माला) शुविम्वरा (सुविम्वरा)


(26)


चक्रिकुण्डल कण्ठि (कण्ठी) लोचक (रोचक) मेखला विभूषिता॥

करति खत्पर (खर्पर) माल (मार) छेदनि मुकुट केश दिगम्बरा

मुण्डमाला खट्वांग (खट्वाङ्ग) मण्डीता लल्लजिह्वा (लोलजिह्वा) 

भयंकरा (भयङ्करा)॥

तुह्म देवी एकु अनेका सयर (सकल) विश्ववियापिता (व्यापिता)

तुजु चरण शिल्यं धरि (शिरंधरि) अवधुव (अवधूत) कर्णपा गाव-इया॥


28. (NC. 37 no. song)


राग : विभास                         ताल : माथ


उदिता तर-इया पवनधुता (पवनधूता)

वलंसुह दामककाश लक्षता॥

ध्रू.॥ घोर दुष्टार (दुस्तार) भवनित ललिता

अखय (अक्षय) निरंजन (निरञ्जन) मोक्षकृता॥

दिनकर मण्डल मध्येगता

करुणामृत रसं सेवकृता॥


(27)


दग्धा (द्वन्द्वा) आलिंगण ( आलिङ्गण) भोय (भय) प्रतिनिहता 

(प्रतिनियता)

देवासुर नरशि (नरशिर) नमिता॥

गावन्ति पवनपति गुरुभट्टारा

वज्रवाराही तुजु सिरे (शिरे) नमिता॥


29. (NC. 38 no. song)


राग : गन्धारभैरवी                        ताल : झाप


विविहं विहुन रे मालवि (मार रवि) शशि वदने

देवासुर नर भुवन हेतु कुरुणा

ध्रू.॥ नाचै रे नमामि श्रीसम्वर विरा (वीरा)

वज्रयोगिनि रति ले (रे) सासम शृङ्गारा

वज्रवाराही आलिगण (आलिङ्गण) कण्ठे

छत्रिसं (छत्रिशं) विरंविरेश्वर (वीरवीरेश्वर ) सम्वरमण्डल

गोकूदहन विम्वुमांस (विम्वुमांस) शुभक्षन्ते


(28)


करुणारूण लोचन चिये सहाव्ये

द्वादश भूज धरिया चारि च-उवदने

निल (नील) सहाव्ये गगण तुजु लिता (लीना)


30. (NC. 87 no. song)


राग : गन्धारभैरवी                        ताल : झाप


त्रिदल पद्म गुह्ये मण्डल महासुखक्षरे

देवी वज्रविरासिनि (वज्रविलासिनि) तत्वज्ञानचक्रे

ध्रू.॥ पिव-इ रे महारस गोकूदहने

स्वर्गमोक्षमार्गसत्व उधारणार्थ (उद्धारणार्थ)

वज्रवाराही आलिङ्गण गगणे

त्रिभुवन देवासुर नर देवी

पूजा पूज्य गुह्याभिषेक अनुत्तरक्रिया

सत्वनरचित्त तत्र क्रियासमुचये (समुच्चय)


(29)


गुरुप्रशादेन (गुरुप्रसादेन) दुर्गति नाशनं

भन-इ कुलदत्त आचार्य चरिता


31. (NC. 24 no. song)


राग : पञ्चम                         ताल : त्रिहूरा


जय वाच्छलि हेरुव धरयि (धरणी) सयर (सकल) सुरासुर जगत उधारि

ध्रू.॥ ते हे भगवति पाशु (पाद) कमल महिमण्डल नौपुर रूणं झुणं कारा॥

हाडाभरंगं (हाडाभरणं) आभरण विभूषितं मेखर (मेखल) घण्ट उलोला

त्रिणि त्रिनि त्रिनयनि त्रिनि नयना॥

करति खत्पर (खर्पर) जिव्ये (ग्रीव्ये) रुद्र नरशिलं (नर शिरं) माला

कुञ्चित खट्वाङ्गवर मुकुट केशा॥

सिरशं (शिरसि) सिँदुर (सिन्धुर) रागे कजल (कज्जल) स्फुला

(स्फूरा)


(30)


कस्तुरि कर्पूर ताम्बुल सुखसारा॥

भन-इ सुरतवज्र वाच्छलिदासा

श्रीवज्रदेवी प्रसादे श्रीहेरुव पाया-इ (पाया)॥


32. (NC. not collect this song)


राग : कामोद                         ताल : खटकंकाल


अवनि निहित जानु निल (नील) सम देहा

केकर त्रिनयन भिषम (भीषण) वदना॥

ध्रू.॥ तेना हूँ हूँ तेना हूँ हूँ

हूँ हूँ हूँ हूँ ! जात अचल क्रोध लाया (शया)॥

निविदित (निवेदित) धनद्युति शोभित भगे (अङ्गे)

पाश खड्गधारी त्रिभुवन नाथ

हरिहर ब्रह्मा इन्द्र च-उमाला॥

मारविघ्न द्युति शत्रुभय हरणं

विविध रत्न मौलिलंकृत (मौलि अलंकृत) देहा

जत (जगत) वाञ्छीतबलफलदायकं (वाञ्छितवरफलदायकं)॥


(31)


33. (NC. not collect this song)


राग :  कामोद                       ताल : खटकंकाल


अवनि निहित वाम जानु खङ्ग (खड्ग) करणे मार संत्राशा

राग द्वेष मोह वंन्धीर (वन्धीरे) पाश त्रिभुवन लाया (राया) अचलवीरा

ध्रू.॥ नमामि श्रीचन्द्रमहारोषणा जात मृत्युभय हृदिता

विश्वनाथ विश्वव्यापित वीरविक्रममहाक्रोध राया

अतिभीषणाद ऊर्ध्वप्रचण्डा कराया (कराल) विन्दुनि किरणा

पिण्डीत अधरा केकर नयना वेरि (वीर) संत्राशा राखह शरणा

माधव माया पुरंन्द्रबह्मा (पुरन्द्रब्रह्मा) रौद्र पिशाचापाद आभरणा

समरस माया रंग (राग) विमोहा ज्ञानलाया (राग) समोहित देहा

रत्नाभरणा प्रज्वलित मौलि केयुर नौपुर रूणं रूणं कारा

सुनर (सुरनर) नागा वन्दीत चरणाराय (चरणाराज) सुरासु (सुरासुर)

अचलवीरा


34. (NC. 46 no. song)


राग :  वसन्त                       ताल : दुर्जभान


अतसि कुसुम द्युति देह प्रभाश्वरा (प्रभास्वरा)

विविधि रत्नमणि मुकुट विभूषिता॥

ध्रू.॥ नाचै रे श्री-अचलवीरा

तेना च-उ आनन्द विरास-इ (विलास-इ) अचला॥

व्योम उद्भव बिन्दु मुद्रा दर्शना


(32)


प्रज्ञा आलिंगण (आलिङ्गण) अद्वय महासुहां (महासुखा)॥

विरागचन्द्र (चन्द्र) द्युति भवभयंकरा (भवभयङ्करा)

तस्य निहित खड्ग तर्जनि पाशा॥

माल (मार) चर्तु (चतुर) दपण (दर्पण) निरविघ्न (निखिलविघ्न) हन्ता

रवि शशि जुगनत गगण विराश-इ (विलास-इ) अचला॥


35. (NC. 14 no. song)


राग : मालव                         ताल : माथ (NC. omit)


जिनभुव अवधुत हेरुव लाया

श्रीहत गमने योगिनि प-इसे॥

ध्रू.॥ आनन्दंदिद (आनन्दादि) वाच्छली आनन्दादि देवा (देवो)

परि नाचति (नाचन्ति) हेरुव मनसा संपुर्णा (सम्पूर्णा)॥

पुष्कसि तहि मरु निजकुल हेरुव

सर्वरि (शवरी) अनेहा पीव-इ (पिव-इ) संतोके (सन्तोषे)॥


(33)


श्रीवंदियाने (श्री-उडियाने) ज्वल-इ चण्डालि

गीत अनेहा कृदन्ति (क्रीडन्ति) वाजंन्ति (वाजन्ति)॥

आलिकालि दु-इ पाद धरंन्ते (धरन्ते)

ए च-उ योगिनि मङ्गल गीते॥

प-इस-इ द्वम्वी (डोम्वि) अदय (अद्वय) संभावे (स्वभावे)

क्रिदन्ति (क्रीडन्ती) कमलकुलिश वजभिवे (वज्रभेदि)॥

घस्मरि (घससरि) घोरि चौरिवेतारि (वेतालि)

लेपन च-उसम हेरुव वाली॥


36. (NC. 1 no. song)


राग :  वर्णादि ( कर्णाटि)                       ताल : झाप


त्रिहण्डा चाप-इ योगिनि देह कवादी (अङ्कवाली)

कमलकुलिश घण्ट करहूँ वियार॥

ध्रू.॥ योगिनि तुम्ह विनु खणहू न जिव-इ


(34)


तोरा (तोर) मुहचुंविया रे कमसं (कमलरसं) पिव-इ॥

क्षेपहयोगिनि रेप (लेप) न जा-इ (जाय)

मणिकुल वहिया रे वंदियान (उडियान) समाने (समा-अ)॥

शाश्व (शास) घरं (धर) धोरे कुंचिय (कुञ्चि-अ) ताले (ताल)

चन्द्रसूर्य दु-इ पक्ष न भराडो॥

भन-इ गोदारि हम कुरु वीरा

नरय (नर) नारि माझे उभय नहं वीरा॥


37. (NC. 45 no. song)


राग : गडग्रि ( गौडी)                       ताल : एकताल (NC. omit)


चक्रि कुण्डल कण्ठि लोचक (रोचक) मेखल भूषिता ग्रीव्ये रुद्र

नरशिल (नरथिर) माला


(35)


शिले (शिरे) चक्रि चक्रि ल-इया भस्म (भष्म) विभूषिता गगण कतोडि

वंधुलि (वन्धुरि) लाया

ध्रू.॥ प्रभुशशि हेरुव मे मोरु कोला जुग्य नाथ श्रीसम्वर लाया (राया)

वज्रकरोटक हात धरिया कण्ठी क्रियाड खट्टागे (खट्टवाङ्गे)

संपुट योगिनि कमल विहासि (विकशि) गेर (गेल) महासुख मेरि प्रशादे 

(प्रसादे)

वज्रवाराही आलिङ्गण सम्वर नाच-इ वहुविहं (वहुविधं) र (रस) भंगे

(भङ्गे)

वाच्छली कोलि (कोले) रैया (लैया) क्रिदंन्ति (कृडन्ति) हेरुव

अर्धभुवनं स्फुरण सुसंगे

सहज संवृति रेया (लैया) गावन्ति कर्णपार (कर्णपाद) श्रीहेरुव

चरणप्रसादे

प्रज्ञा आलिङ्गण क्रिदंन्ति (कृडन्ति) हेरुव विरास-इ (विलास-इ) 

शुन्यकरुणा


(36)


38. (NC. 25 no. song)


राग : भैरवी (NC.) भैरव)                         ताल : मथ


जयं जयं वाच्छ (वाच्छलि) सयर (सकल) शुभाशंकरी (शुभाङ्करी) अख

(अखय) दुख संहारणि

ध्रू.॥ रुणं झुणं अनेहा हूँकार नाच-ई (नाच-इ) मार निर्वारूवे (निरारूपे)॥

जिम परयानि रे देहा पुर रे जिन जननि ले (रे) वजयोगिनि

(वज्रयोगिनि)

जयं जयं हाडाभरण सुशोभा करति कपाल खट्वाङ्गधारि॥

जयं जयं रौद्रश्मशाने स्थिर ग्रिव्ये रुद्रनरशिल (नरशिर) माला

जयं जयं राखहूँ जगतसंसारे प्रणमामि अद्वय संवाच्छलि॥


36. (NC. 8 no. song)


राग : ग्वडग्रि (गौडी)                        ताल : माथ


द्वंविनि (डोम्बिनि) सरोवर विरास-इ (विलास-इ) क-इसे

उथ भराडो मण्डल लाया (राया)


(37)


ध्रू.॥ हेजंकार (एवंकार) हमरे (कमले) जगत निवोसियारे (निवासियारे)

अमिय अमिय निरंजन (निरञ्जन) देशे

सहज सुन्दरी जिन प-इशे

ए च-उ योगिनि येले मेले (एले मेले) मेला

वज्रवाराहि आलिङ्गण ला (कोला)

उठ भराड करुण क्वारि (कपालि)

जयं जयं आलिङ्गण निलवर्ण (नीलवर्ण) वारि (वाली)


40. (NC. 17 no. song)


राग : ललित                         ताल : झाप


सोदश (षोडश) हायन तरुण किया शिलवासा नामि टोरे राजय

हारा

हाडमार (हाडमाल) आभरण किमिति तुजु सरायन पावण (पावन)

सिल (शिर) मुनिय हारा॥


(38)


देवी क-ई तुलिय किमिति तुजं रात सारिय (शरीरा)

दहिनि आलिह मोहधर सिद्धि वीरा त्रिनि नयन अति गुरुवो॥

निरं सुरत मण्ड (मण्डल ) मझे वशसि सताया अगुह्य धरसि नक्कपाला

(नरकपाला)

कर (करटि) कपाल खट्वांग मृगहारा पञ्चसि (पञ्चशिर) जटामकुट

केश करिया॥

पञ्चतथागत दहसि च-उदेवी कहणिथ देवी पाचनि जयं

जगत मारुण सन (मार नाशन) सयर (सयल) जगुमाता जगता ससिस

(अशेष) मो-इ अपकोटियं॥

भवदुख भेत (भीत) सविनय सुरतवज्र कस्य जानु देवि गुरुप्रसादे

अचिय चिय चितु दिस्ये जहताथि जननि भव अभावे॥


(39)


41. (NC. 13 no. song)


राग : भैरवी                         ताल : एकताल (NC. omit)


भास्वर षडमुह वजचित्त (वज्रचित्त) रे धमोदया (धम्मोदया) परिभूमि रे

कुटांगार (कुटागार) मनोहर मण्डल वजधातु (वज्रधातु) हिया कमल

वरे॥

ध्रू.॥ दृढ भावंन्तु रे (भावन्तु रे) हिया हृदयकमल हियचक्र रे

ऋद्धि सिद्धि कर विघ्नविनाशन हो-ई (हो-इ) महामुद्रा सिद्धि रे॥

आदिबुद्ध हिया शसधर (शशधर) मण्डल विरास-इ (विलास-इ) खहदा

चक्रेरे॥

निर (नील) निरवर्ण (नीलवर्ण) शिलेगत (शिरेगत) श्रीमन्त्रधातु

परिभूमिरे॥

प्रशादि रे (प्रसारि रे) दहदिह (दशदिश) रश्मिबुद्ध रे दिक्षात जत

(जगत) उधारि रे

सयर (सकल) बुद्धहिया एक कुल-इया निजवीजंया (विजया) 

परिभूमि रे॥


(40)


गुरु उपदेशे शिज्झ-इ पुंगल मा कुरु चित्त विभंग (विभङ्ग) रे

सतगुरुचरण शिलेगत (शिरेगत) धरिया भन-इ सुरतवज (सुरतवज्र) तत्वरे॥


42. (NC. omit)


राग :  भैरवी                       ताल : एकताल


गजजिन उर्द्धर हाये (हाथे) धर-इया कमलकुलिश अद्वय वारि

डमरु करति कुठार त्रिशुला वाम खट्वाङ्ग कपालधरा

ध्रू.॥ श्रीसम्वर लाया (ल-इया) वाच्छलि तुह्म जुगेरिणा (जुगेलीना)

मार-इ रे चाप-ईया ( चापयिया) रे माया साशु भवन्तु मुद्रासिद्धि रे

पाश ब्रह्ममुद्रा वामहाथे धरिया तु नरशिलमाला (नसशिरमाला)

नीलहरीत लोहित कनकाभव च-उमुख अतिवि (अतिविकट) कराल

अधरा

आलिधप्रयो भैख (भैरव) चाप-ईया (चापयिया) रे कालि रात्रि विम्वुमुद्रा

विश्वकुलिश अद्वयचन्द्र जयम (जटा) युक्त व्याघ्रचर्म षडमुद्रा

छत्रिशवीरवीरेश्वरा नायक त्रिनिचक्र महो वीरंवीरा

करुण शृंगार (शृङ्गार) वीरवीरेश्वर भूज-ई (मूज-इ) संयर (सकल)

संसारधरा।


(41)


43. (NC. 71 no. song)


राग : ललितगुजलि (ललितगुर्जरी)               ताल : जटि


उरगाभरण श्रीरित (श्रीचित्त) तनु शोभा

इन्द्रनील द्युति पिङ्गलकेशा॥

ध्रू.॥ जगतनुकंपा (जगदनुकम्पा) कृपागुण देवी

दुष्टमार विघ्ननाशनी देवि॥

रग्त (रक्त) नयनत्रिनि रुद्रमाला

खड्ग करति कपाल नीलोत्पला॥

व्याघ्रचर्मवस्र प्रत्यालिणा

सर्वलम्बोदर सर्वाक्रान्ता॥

चरण शरण श्री-उग्रतारुणिमा (माता)

भन-इ (भनयि) अमोघवज्रगीत चरिता॥


44. (NC. 20 no. song)


राग : निवेद                        ताल : माथ


अखय निरंजन (निरञ्जन) अद्वय अनुपम गगण कमलेजे (कमलजे) शाधना

शुन्यता विरासित राय श्रीचिय देवि प्राणबिन्दुसमय जोलिता (ज्वलिता)॥

ध्रू.॥ नमामि निरालम्ब निरक्षरस्वभाव हेतुस्फुरण संप्रापिता

सरद (शरद) चन्द्रसम तेजप्रकाशित जलजचन्द्रसम तेजप्रकाशित॥


(42)


खङ्गयोगावर (षडङ्गयोगाम्वर) साधि रे चक्रवर्ति मेरुमण्डल भवतरिता

निर्मल हृदया चक्र ध्यायित अहिनिशि क्षचर यंन्तमय (यन्त्रसमय)

साधना॥

आनन्द परमानन्द विरमानन्द सहज चतुरानन्द जे संभवा

परमा विरमामाझे न छादिले (छाडि रे) महासुख सुगत संपद (सम्पद)

वरप्रापिता॥

हेवज्रकालचक्र श्रीचक्रसम्वर अनन्तकोटि सिद्धा पारंगता

श्रीहत वंदियाने (उडियाने) पुर्णगिरि जालंधरि (जालन्धरी) प्रभु महासुख

जानहूँ॥


45. (NC. 55 no. song)


राग : कर्णाढि (कन्नडि)                         ताल : झाप


निर्मल गगनतु स्वहित अग्ने

त्रिमुह त्रिलोयन (त्रिलोचन) समर सुहवे॥

ध्रू.॥ भाव-इ रे श्रीयोगाम्बर विरा

योगिनि जारे (जाले) करुणे नाच-इ॥

डाकिनि मण्डलचक्र फर-इया (फल-इया)


(43)


मण्डल कोन्ये (कोने) पुजकर-इया॥

वजि (वज्री) घोरी वियारि (वेतालि) चण्डालि

सिंघिनि व्याघ्रि जम्बुक उलुकिनि॥

डाकिनि द्विपिनि च-उसिकं वोजनि

समयर (सकल) समर भय बन्धन मोच-इ॥


46. (NC. 48 no. song)


राग : मालव                         ताल : माथ (NC. omit)


वजि (वज्रि) घोरि वेतालि चण्डारि (चण्डालि) देवि

सिंघ्रीनि (सिङ्घ्रिनि) व्याघ्रिनि जम्वुक उलुकिनि

ध्रू.॥ नमामि श्रीयोगाम्बर-इ ज्ञानेश्वरिया

त्रिनिनेत्र देवि त्रिभुवन प-इसे

पुर्व (पूर्व) उत्तर पश्चिम दक्षिणदिग देवि

डाकिनि च-उसिक वोजनि

चर्तुदिग (चतुर्दिग) तुह्म फलन्तु देवि

त्रिनिनेत्र देवि नाचन्ति देवि


(44)


हरिहर बह्मा (ब्रह्मा) इन्द्र असुर गनमने (गमने)

षोडश योगिनि समरस भावे॥


47. (NC. 32 no. song)


राग : मारसि (मालश्री)                         ताल : माथ


वजयोगिनि (वज्रयोगिनि) हेरुय (हेरुव) लाया (राया)

त्रिभुवननाथ देहि मे प्राणे॥

ध्रु.॥ पिव-इ रे महारस महासुख क्षर-इया

वजदेवि (वज्रदेवि) फलिया अनुत्तरज्ञाने॥

उर्द्धनारि (उर्द्धनाडि) त्रिदल कमल संयोगे

देहि विराश (विलास-इ) पवन संभेद-इ॥

भुंज-इ (भूञ्ज-इ) पंञ्च (पञ्च) महासुख क्षलि (क्षरिया)

पञ्चसिर (पञ्चशिर) सविज (संवीज) वारुणि॥

सतगुरु चरणप्रसादे चतुर्थाभिषेक

प्राणेश्वरि संसार समुद्रा॥


(45)


48. (NC. 95 no. song)


राग : मालसि (मालश्री)                        ताल : माथ (NC. omit)


नमामि श्रीवज्रयोगिनि लोहित

तरुणिमण्डलमाझे प्रज्वलित देहा॥

ध्रू.॥ नोमि (नमामि) श्रीवज्रयोगिनि लोहित वर्णाभा

अनुत्तरबोधि प्रदायनि देवि॥

त्रिभुवन व्यापित दहिन करति धारि

सहजानन्द श्वरूपि (स्वरूपि) देवि॥

कुटांगार मनोहर मण्डलां

वाम खत्पर (खर्पर) केतु खट्टांगधारि॥

रग्त (रक्त) घम्मोदया चाप-इ तान्दव (ताण्डव)

प्रणमामि वाचछलि गुह्यश्वरि (गुह्येश्वरि)॥


49. (NC. omit)


राग : नाट                        ताल : जटि


उदयागिरि तत (तल) लगति संकासा

कुलिश करोटक धारित देवि

ध्रू.॥ मुकुट केश त्रिनि लोचनि देवि

तुह्म देवि भास्कर विद्याधरि देवि

आलोकिक (आलोलिक) चक्र उदया ले (रे) स्थिति

मरुप्रदक्षिण दिनरात्रि

जगतरवांच्छत (जगत रे वाञ्छीत) परिपुरिता


(46)


गुह्य देवि मारित विद्याधरि देवि

जुगुति रे भेद रजनि संधिस्थि (सन्धिरिथ)

नक्ष (नक्षत्र) विष्टि (वृष्टि) उदका खने शुष्क रका

संहार करता सृष्टि संकरता

तुह्मदेवि गुह्यराद्विद्याधरि देवि

मर्त पाताल त्रिभुवन चक्षु

तुह्मदेवि रक्ष सर्वदेव दृष्ट

उज्योति रे दयाभव देवने दृष्ट

तुह्म देवि भासुर (भास्वर) विद्याधरि देवि

रश्मि पञ्चवर्ण छुलिता लक्षतो

रष्ट (नष्ट) तिमिर सर्वसत्व नष्ट

स्वरश्मिं कर सर्वसत्व न दृष्ट

तुह्मदेवि छादिर अननस्ये देवि

देवारि पाश खङ्गत गुरु-उपदेशे

तुह्मदेवि कलविर विद्याधरि देवि॥


50. (NC. 97 no. song)


राग :  कर्णाटि                       ताल : झाप


श्रीहेवज्र नेरात्मा देवि त्रिभुवन नाथा

पञ्चजिन व्यापित पञ्चवर्णदेहा॥

नमामि श्रीगोच्छाग्र (श्रीगोपुच्छाग्र) चैत्या

हेरुक श्रीगुह्येश्वरि वज (वज्र) योगिनि शुन्यता॥

पूर्वादिगस्थित भैरव निलवर्ण (नीलवर्णा)

दहिन पात्रधारि वामबिन्दु धरा॥


(47)


घस्मरि चौरि योगिनि देवि

गांवति (गावन्ति) निरावर्ज (लीलावज्र) हूँकार संवजा (संवज्रा)॥


51. (NC. 28 no. song)


राग : ललित                        ताल : झाप


विषय विषय विनु पवन संयोगे ज्वर-इ (ज्वल-इ) चन्द्रारि (चण्डालि)

नाभिकमले

दह-इ जिनविम्वु शशि झरयि शुरत (सुरत) जिन त्रि-आमा वसमय स्याम 

सयरं॥

ध्रू.॥ नमे नमो मञ्जुघोष कालचक्र हेवज्र संवर (सम्वर) विश्वरूपं

प-इ पदुम संयोगे संभव निश्चरा सहजा आनन्दमय ज्ञानरूपं

वज्रपर्य्यकशन (वज्रपर्य्यङ्कासन) कुङ्कुमारुण तनु नामसंगिति (सङ्गीति)

अक्षोभ्य ध्यानं

जगत दुख नाशन बोधिफलदायकं योगधर्ममोह भाव हृदयं॥

गुरुवाक्य दृढ धरिया अर्द्धपवन कुंचिय मणिमकुट चन्द्रदि अतो धरिया

च-उ चक्र पात्र शरीर सुर्य (सूर्य) भूमो मोरु वाराह भुवनं॥


(48)


सप्रमायादृश भावपरिभावना बुद्धधर्मसंघ (सङ्घ) सरणा (शरणा) गतियं

गुरुचरणशिल्यगत (शिरेगत) धरिया गावन्ति सुरतवज्र जन्म जन्म मोरू

बुद्धशरणं॥


52. (NC. omit)


राग : मधमत (मधुमन्त)                        ताल : दुर्जमान


वज्रमय भूमि शोधिय मण्डल भेदनि वज्रिभव वज्रवन्ध हूँ

सप्तरसोत्तर (सप्तरसातल) भूमि निवासयमारं सशर (सकल) सत्राशरकरणं॥

क्षुमनि (शुमनि) गृह्न हूँ फट गृह्न गृह्न हूँ फट गृह्नापय हूँ फट

आमेहो भगवंत विद्याराज हूँ फट खेदय अलिखेदय (अरिखेदय)॥

हात कराजिय चिन्त उछिय वज्रप्राकार हूँ व हूँ

अष्टदिगमार पलायत रे सर्वविघ्न कृत खण्डर॥

नगण निरावन्धकुलिश निवारय वज्रवितान हूँ ख हूँ

वज्रपंजल (वज्रपञ्चर) हूँ ज्वलिताङ्गी वज्र सरजालसंत्रासं॥

क्रिडति मण्डल रायवीरेश्वर सर्वसत्वहिया प्रमोदकर

सतगुरु आज्ञाशिल्यगत (शिरेगत) धरिया भन-इ लिलावज्र- भूमिश्वधरे॥


(49)


53. (NC. omit)


राग :  मल्लार                       ताल : माथ


गन्धमण्डल मध्ये वंकार संजाता

द्विभूज एकमुख प्रिथ्वी देवि (पृथ्वी देवी)॥

ध्रू.॥ तुह्म हि महादेवि प्रिशिदि (पृथिवी) माते

सर्वरत्नसम्पूर्ण वीभुषिता (विभूषिता)॥

पितवर्ण (पीतवर्ण) सौम्यरूपीनि देवि

सर्वम भयंकर लोके संतारणि॥

कनकभद्र घण्टवामकरधारि

सवाकल (सर्वेकर) अभय लोकसंतारनि॥

दिव्यालंकार भूषित देहा

हारनौपुर निर्घोष वसुन्धरा॥


54. (NC. omit)


राग :  भैरवी                       ताल : एकताल


निर्माणाम्बुज मध्येगत कलशा पञ्चामृतमय परिपुरिता

विधमय (विषमय) गर्भित पञ्चपरचार (पंचोपचार) नीलवर्ण रज शिरसि

स्थापित॥

हूँ करहू वज्राचार्य मन्त्र विन्याशित कर्मवज्री सहिता प्रज्ञ्वास्वरूपिणि

वज्र सिष्याभिमत परिपूर्ण हेतुना भव समुद्र तरणि तिमिर हरणा॥

पूर्वदल गत पञ्चसूत्र सरंजाता पञ्चविंशति भेदित बुद्धकार्य

दक्षिणदलगत वज्र खसम स्वरूपं त्रिभुवन समरस पाय विशुद्धि॥

पश्चिमदलगत पञ्चशोधित धवलवर्णसिद्धि रसं भाजिता

उत्तरदलगत घण्टाघोष नादिता ज्ञानस्वरूपिनि विश्वजननि॥

उर्द्धादिदलगत श्वेतपीतारूणारक्त श्यामवर्णरजपियारे

पुष्प विन्यासित विधमय (विषमय) पुजिता (पूजिता) प्रणमामि वज्रसत्व

सिरसांधिता (शिरसाधिता)॥


(50)


55. (NC. 73 no. song)


राग :  भैरवी                       ताल : एकताल


प्रविशतु भगवन महामोक्षपुर ले (रे) देश-इ अनुत्तर बोधिपदं

जरामरणभय बन्धन मोचय परमामृत भय परमगुरु॥

ध्रू.॥ एहि वत्स महायान नयोत्तम देहि चिन्तामृत पानरक्त

देश-इ रक्ष हम गोचर गुह्यक तथतानुत्तर बोधिपदं॥

सर्वतथागत पूजनया घातयामि ले (रे) पापतनु

पर्य्युपाश दिक्षीत परिवेस्थित (परिवेष्ठित) कमलकुलिश परिभ्रामरे॥

कुसुम उदक मुकुटाशनि कमला जिनकुलसयाचार्य (समयाचयि) पदं

मन्त्रादिजल दर्पण शरक्षेप दशवलमति पद भासुरं॥

नमामि श्रीचक्रसम्वर गुरुवा (गुरुवाक्य) दृढ धारिया (धरिया) 

सतगुरु चरणकमल प्रसादे अनुत्तरसिद्धिपदमोक्ष फलदं॥


56. (NC. 41 no. song)


राग : नाट                       ताल : जटि


सहज सरोरुह हेरुव लाया (राया)

त्रिभुवननाथ देहि विरासा॥


(51)


भुज-इ (भूञ्ज-इ) महारस गुह्याभिषेक

कमलकुलिश संयोगसंभवा॥

उर्द्ध द्वेष णादि (नाडि) रुधिया प्रवेशा

प्राण बिन्दुःस (सम) महासुख दाता॥

ज्ञानस्वर (ज्ञानेश्वर) रूपिनि देवि विश्वव्यापिनि

क्रिदनि (क्रिडन्ति) सरणा महासुख राया॥

गुरुप्रसादा अनुत्तरकृपा

देहि मे माता संसार समुद्रा॥


57. (NC. 9 no. song)


राग : मारश्री (मालश्री)                       ताल : माथ

वाम दहिने एदु-इ घरणे

माझे विरास-इ (विलास-इ) महासुरत क्षद-इया (क्षर-इया)॥


(52)


ध्रू.॥ भूज-ई (भूञ्ज-इ) रे जो-इया सहजा आन्दे (सहजानन्दे)

सयल विराश-ई विलास-इ) ए परिभाव्ये॥

गयने मयने चित्त विराश-इया

कायवाक्त्ति (कायवाकचित्त) एकु करिया॥

एक धाव-इ आज्य (आज्ञा) ल-इया

आच-इ रे पान गाह्या (गान्धा) धारि (वारि)॥

पाव-इ रे गुरु पाय प्रसादे

भन-इ वाकवज (वाकवज्र) शुन्य समाधि॥


58. (NC. 11 no. song)


राग : नाट                        ताल : जटि (NC. omit)


कवने रूप लोकेश्वर कवने रूप बुद्धं॥


(53)


अखय निरजंन (निरञ्जन) सयारा (सयल) विशुधा॥

ध्रू.॥ नाचै अवधुत कानक माने॥


59. (NC. omit)


राग :  नाट                      ताल : जटि


सकल जगत गुरु सम्वर विरा (वीरा)

अनुपम करुण कारे सुखचित्तो॥

ध्रू.॥ सम्वर कुरुमयि तोषं

खट्वाङ्ग डमरु ग्रिव्ये नरशिरमाला॥

ध्रू.॥ नाचै-आ विविध विकल्प विनाशन रूधा

सम्वर अङ्कुरस्य निरजनं (निरञ्जन) अङ्कुर विहेना॥

अनुत्तर धनगति सयल विशुद्धा

नाचै-आ देवि वाराहि तुह्म मण्डित देहा॥


(54)


भवभय हरणविशाल विशेषा

सम्वर केहु वोरे (वोले) हेतुवज्र केहु वोरे (वोले) निरा॥

अवधुत काहन गतिं सहस्र नेद्रा (नेत्रा)

नाचै-आ सकर (सकल) विघ्न हन्ति मति प्रतिरूणा॥

रतिपति स्वर्ज्ज निवासन रुद्धो

सम्वर फलहु हम भमल शुच्छन्द्रो॥

त्रिभुवन नाथ एकु सम्वर राया

नाचै-आ भावाभाव कृताहति मति चित्तो

अनुपम शुखरस (सुखरस) मग्न सुखचित्तो॥


60. (NC. not collect this song)


राग : तोडि                       ताल : माथ


शुप्रति मण्डित मण्डल चक्रं

उच्छीत छत्र प्रताक (पताक) वितानं॥

सुपति नादित तुर्य मनेकं

तदनुचगित वरेण मनोज्ञं॥

पञ्चबुद्धात्मक सर्व यज्ञायं

पस्य (पश्य) कुनाट कुचित्त कुदिव्यं॥

जात्राहि एकु महासुख नामा

नृत्यंतु गित सनकर सेल॥

श्रावकयान मिसिक्षित भिक्षायं


(55)


माथ चखिर अथतवे वरिवरं॥

बुद्ध चरि चर बुद्ध गुणेशं

एख निदानं भवतिक्षं स्वयंभु॥

वधतु जेन जटा परिमुच्छित तेन बुद्धं

बुद्धविभावनया विपरित मिदं सकलायं॥


61. (NC. 10 no. song)


राग : वराडि                       ताल : झाप


को-इले वंशा वाजि रे विना

अनुहत सर्वदेव त्रिभुवन रिणा (लीना)॥

ध्रू.॥ अनुपम पुजिरे दारक ल-इया

भेरि रे ऋद्धि सिद्धि रोहि प्रशादे॥

गंगा जमुना ए दु-इ तन्ति

श्वषिरे रवि शशि गगण दुवारे॥

उदि गेर (गेल) चन्द्रा रवि अस्तांगे

गगण शेखर (शिखर) माझे पवन हेण्डोरे


(56)


पवन पञ्चारे एकु रे वद्धा

विपरित करमे दारक सिद्धा॥


62. (NC. 49 no. song)


राग : भैरवी                        ताल : एकताल (NC. omit)


चण्डाग्र मुशाने शिरिश व्रिक्षा (वृक्षा) वासुकि नागा गर्जित मेघा

गह्वर श्मशाने अश्वक वृक्षा घुर्नित मेघा तक्षक नागा

ध्रु.॥ इन्द्रयमजलयक्ष भुतवह्निवायु राक्षसदिगविदिग वलिदेव तिरे

अष्टश्मशाने छत्रिशं वीरेश्वर नाच-इ सहजानन्द रे

कंकरि घोंरा वर्तित मेघा ज्वालाकुला ककोटक नागा

करंक (कलङ्क) भै (भैरवा) वर्तितमेघा सरसिज नागा चुटक वृक्षा

अतुत हासा शंखपाल नागा प्रचण्ड मेघा वर्तमरि रूहा (महीरूहा)

लक्ष्मीवाना करंजवृक्षा घूर्नित मेघा महापद्मनागा

घोर श्मशाने पकति वृक्षा अनन्त नागा पुरणमेघा

किलिकिलि लावा (रावा) अर्जुन वृक्षा कुलिक नागा वर्षण मेघा


(57)


द्वादशभूजा द्वादशभुवना च-उ वह्म (व्रह्म) वदना द्वादशनयना

भन-इ कर्णापा राखहु शरणा कालिरात्रि रिपु चाप-इ मर्दना


63. (NC. not collect this song)


राग : गन्धारभैरवी                       ताल : चम्पति


घुमांगारि चन्द्र करारि (चण्ड करालि)

भिषम पिङ्गर (पिङ्गल) केश वयना॥

ध्रू.॥ भूंजयि (भूञ्ज-इ) रे हूँ हूँ हूँ हूँकार करणे

नाना विहा रौद्र महावलि पूजा॥

समया रक्षन्तु योगाम्वर देवा

वाहुरि वाहुर च-उमुख नयना॥

शितय करंक च्छत्रा वलि शोभा

पुष्टि करंक समाकुल वयने॥

रौद्र महावलि पितृवन गयने

मद्यमांस मच्छ (मत्स) रुधिर आहारे॥


64. (NC. 56 no. song)


राग : भैरवी                        ताल : एकताल


निर्माणादिचतुषष्टिदल सरोरुह मध्येगत कादिवृत नादरूपी


(58)


समिरे (सुषिरे) प्रेरित ललिगाभिनि (ललितोर्द्धगामिनि) नरनिर

(नलनिल) सुतोपद्मज्वलरूपि॥


धू.॥ ओं नमामि देवि श्रीवज्रविलासिनि त्रिभवहरण खसम ज्ञानदेवि

वंदियान (उडियान) पुर्णगिरि कामरूपि श्रीहत श्रुविशुद्ध (सुविशुद्ध) 

मण्डल नृत्ययन्ति॥

वसुदल सरोरुहवरं धर्मचक्र षोडशदल समभोग (सम्भोग) चक्रं

द्वात्रिंशतदल कमल महासुखचक्र हूँकाररूप श्रीहेरुकनाथ॥

दह-इ जिनविध्यादि तितया भेदनि श्राव-इ मृतधारया (अमृतधारया)

नादरूपि

पीठादि दशभूमि सुगतपूजनि जिनज्ञान दायनी वीरेश्वरी॥

दर्पण प्रतिबिम्बु जलजचन्द्रोपम अहिनिहि (अहिनिशि) सुमरन्ते वज्रदेवि

जन्मजन्ममोरु तुंजुं पाय शरणा दुर्गति नाशन मोक्षप्रदाता॥


65. (NC. 35 no. song)


राग : भैरवी                        ताल : झाप


गोकुदहन पञ्चज्ञान स्वरूप

पञ्चामृत रस पञ्चसारि (पञ्चसालि) पुजिया॥


(59)


ध्रू.॥ तुह्म देवि वरिराय (वलिराय) त्रिभुवनवीरा

विमल लोपञ्जक समया आनन्दे॥

विरवीरेश्वर सहजानन्दे

करंर (कलं) कमलासन (कलंकमलासन) हृदयानन्दे॥

पञ्चबुद्ध पञ्चस्कन्ध स्वरूपं

देवासुर नर प्रमुदित हृदया॥

ओं आ हूँ ह्रीं खँ स्वधन (शोधन) करिते

डमरु घण्टा ध्वनि विरमानन्दे॥


66. (NC. 79 no. song)


राग : कर्णाटि                     ताल : झाप


षटयोगिनि देवि त्रिभुवन व्यापिनि

विघ्न मार दुष्ट दर्प विनाशिनि॥

ध्रू.॥ नमामि श्रीवज्रवाराहि

ऋद्धि सिद्धि दायनि जगत जननि॥

पुर्वदलंगत रक्तवर्णाङ्गी

ईशाने यमिनि देवि निरवदना (नीलवदना)

वायुव्ये मोहिनि देवि श्वेतवर्णाभा

पश्चिमे संचारिणी देवि गौरवर्ण देहा॥


(60)


नैमृत्य (नैऋत्ये) संत्रासिनि देवि हरित वर्णाभा

दहने (दहिने) चण्डीका देवि घुमंवर्णाङ्गी॥

चतुरभूज शकानना (एकानना) पञ्चमुद्राभरणा

स्व स्व बीज संभवा (सम्भवा) नवरस दिगम्वरा॥


67. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी                    ताल : झाप


ओं आः हूँ फट अन्तरे स्वाहा मन्त्र उच्चारण रे

पूजा पुज्यक पुज्य भाव्ये तत्व स्वरूप वलि भाव्येत

ध्रू.॥ ख ख खाहि वलिपुर रे घ घ घाटय विघ्न हरे

पंचमिया रस (पञ्चामृत रस) पञ्चसारि (पञ्चसालि) रे पञ्चज्ञान सर्वरिणा

(सर्वलीना)॥

सर्वयक्ष राक्षस भुत प्रेत पिशाचोतमा परमारे

डाकडाकिनि दु-इ अष्टश्मशाने इदं वजि गृहतु रे (गृहन्तु रे)॥

दानपति सर्वकार्य तत्वया सर्वसुख संपन्ति शान्त रे

जथैव तथैव तुजर्थ पिशेव जिघ्रथ मात्रका (मातृका) मर्थ (मन्त्र) रे॥

समय रक्षन्तु दानप्रति रे सर्वसिद्धि सम्पद शान्तिरे

आसंसार तथागत वचन सर्वसिद्धि सम्पद वृद्धिरे॥


(61)


68. (NC.  not collect this song)


राग : विभास                     ताल : माथ


द्विभूज एकमुख रक्तवर्णा

नगन मुकुट केश त्रिनि रोचनि (लोचनि)॥

ध्रू.॥ नमो देवि बुद्धडाकिनि विश्वजननि

त्रिभुवन व्यापित जिनज्ञान दायनि॥

दहिने करवज्र विरासित दग्धंति

वामे कटोटक चतुर्मार संपिवथि॥

तरुणि मण्डल माझे उदियान (उडियान) गमने

रत्न नौपु (नौपुर) वल शतत (सतत) प्रवेशिता॥

श्रीविद्याधरि देवि सुरनर सहिता

सकल ऋद्धि सिद्धि देहि मे माता॥


69. (NC. not collect this song)


राग : नाट                     ताल : जटि


पञ्चसूत्र गुरुतत्व

त्रिपद्म उत्पति वज्रविराशि (विलासिनी) देवि॥

ध्रू.॥ नमामि श्रीकुलदत्तवज्रा

देवि प्रसादेन मोक्षफलदं॥

डाकिन्य ग्रहेषु पुरिश वृक्ष कग्वा

खण्डारोहा लान्या स्यामार्थ वामे॥


(62)


कनक सन मादक्षिणे रूपि निष्ठा

पूजोपात्र चतुर कुण पत्रिदिगविदिग॥

पञ्चपियुषपूर्णा प्रदोष्ठा स्थान दोषा

जयतु भगवतु डाकिनि वाराहिकोष्ठे॥


70. (NC. not collect this song)


राग : मधुमन्त                    ताल : दुर्जमान


लिक्ष्म (लक्ष्मी) क्षणहिन (भनयि) सरसूत्र

येस्य देवि योगिनि गणमण्ड (गणमण्डल)॥

नमोहूँ श्रीवज्रविरासिनि (श्रीवज्रविलासिनि)

चतुर विंशति पिथ्वेश्वरी गणमण्डला॥

यस्माभार्य्या स्व स्व स्थाने आनन्दमुरुति

वज्रमण्डल पद्मावलि निद॥

अष्टश्मशाने जाज्वलमान

चन्द्रसूर्य दिनरात्रि तातुरे॥

दानप्रति सर्वविघ्न निवारणं

गुरु उपदेश मोक्षफलं॥


(63)


71. (NC. 90 no. song)


राग : मल्लार                     ताल : माथ


शशिया किरण द्युति ललीतासन (ललितासन)

किरतिरत्न रजितं (रञ्जित) सुस्वभा (सुशोभा)

ध्रू.॥ नमामि श्रीवसुंधारा देवि जिनजननि

चिन्तित मनसारनिधारि

भद्रकलेश (भद्रकलश) वामकर धारि

धान्यमंजुश्री प्रज्ञापुस्तक धारि

निधिदरसन रत्न मंजलि (मञ्जरि)

गुरुचणे (गुरुचरणे) प्रणमित धारि

लोकेश्वरवज्रपाणि इलादेवि

जम्भल वरुण मण्डल जक्षा (यक्ष)


72. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी                     ताल : झाप


कुम्भनिराजन पञ्चज्ञान स्वभावे रक्ष रवि जमुत्पन्ना

निभात्वसि महास्वभावं मामकि सुर सुन्दरीत वज्रयोगिनि॥

ध्रू.॥ नमामि देवि श्रीवारुणि रसित वज्रा तुभिषे जमुत्पन्ना

आलिङ्गणे सविनेय सनस्थिता एकमुख त्रिनिलोचनि देवि॥

अष्टादशभुजधारिक करन्धकवार शरक्षप दिति करे


(64)


पाशाङ्कुश खप्त (खत्पर) ध्वजा गडा वज्रन वलं दप थमेसवे॥

अपर उद्धकर फेटक धनुवज्र वन्ध खट्वाङ्ग कमलन्ते

त्रिशुर (त्रिशुल) वज्र वृशेभ्यो गणपत्रिदनुक मोनुरे॥

ओं ह होः ह्रीँ हूँकार हरन्ते वर्ण समृत्याकारं भावयेत

तेनाभव अहिनि संकुल वारुणे सोपमदा वज्रभवमाला॥


73. (NC. 77 no. song)


राग : ललित                     ताल : झाप


महापञ्चपात्र समयाचारि तु व-इढा वे

दशदिग दशवल आराधिया रे समयानन्द भरन्ति हो॥

ध्रू.॥ वीरवीरेश्वर वर-इया (व-इढा) ने मण्डलमोहनि विश्वफलिय

एहँकारा वलिदान देवि दानपतिय विघ्न निवारय॥

पूर्व वैलोचने (वैरोचन) रत्नसंभव (रत्नसम्भव) अमिताभ पश्चिमे वियापिता

उतर (उत्तर) अमोघसिद्धि माझे अक्षोभ्ये समया आनन्दे भाति हो-इ॥

सिंहनादे वाजिया रे डमरूप्रसादे अष्टयोगिनि दानपुण्ये

जालन्धर पुण्ये अवधुर-इया (अवधुत ल-इया) कर्णपा चरण भवरन्ति हो 

(भरन्ति) हो॥


(65)


74. (NC. not collect this song)


राग : मालव                    ताल : माथ


मेरुमण्डल परलोभल पवित (पवित्र) देवाशुर असुरवीरा

सर्वलम्बोदर भिषण वयने पिंगलकेश निलवर्णाभा॥

नेता सदादि वाजिया रे आनन्द नाच-इ

देववलि महाकाल योगिनि बोधिया रे॥

अष्टनाग विभूषित वयने कति (करति) खट्वांग कपाला

हूँ हूँकाल (हूँकार) नाद चर्म-इयारे रुधिर गण-इ मुण्डमाला॥

व्याघ्रचर्म आभरण नाग विभूषित चलणा (चरणा) महाकालदेव

अतिभयानक तादव (ताण्डव) नाच-इ मयन पि-ईवं (पिव-इ) उलमत्ता

(उन्मत्ता)॥

धर्मचक्रवर्ति इन्द्रभूषित लयिया महाकाल उ-एसि

संवृति परमार्थसिद्धि स्वभाव्ये (स्वभावे)॥


75. (NC. not collect this song)


राग : नाट                     ताल : माथ


पूर्वद्वार डाकिनि श्वेतवर्ण प्रेतरूण (प्रतोरूण)

दमरु खट्वाङ्ग सहित कार्त्तिपात्रधरा॥


(66)


ध्रू.॥ दक्षिणद्वारे प्रेतारूधा (प्रेतारूणा) लामा स्थापित वर्ण

करति पात्र डमरु खट्वाङ्ग धरा॥

पश्चिमद्वारे खण्डारोहा रक्तवर्ण

प्रेतारूण डमरु खट्वाङ्ग पात्र करति धारि॥

उतर (उत्तर) द्वारे प्रेताद्वारे रूपिनि श्यामावर्ण

कर्तिपात्र खट्वाङ्ग डमरु सहिता॥

पञ्चरक्त सूत्र वज (वज्र) किरण

प्रणमामि श्रीवज्रविराशिनि (श्रीवज्रविलासिनि)॥


76. (NC. 88 no. song)


राग : तोडि                     ताल : माथ (NC. omit)


वाराहिव्ये स्थित त्रिदल संरोजा (सरोजा) दिनकर मण्डलमध्ये स्थिता

रक्त धर्मोदया चापिया तादेवि (ताण्डवी) मुकुटकेश दिगम्वरा॥

ध्रू.॥ प्रणमामि वाच्छलि श्रीवज्रयोगिनि अनुतर (अनुत्तर) बोधि प्रदायनि

द्विभूज एकमुख त्रिनिलोचना लोहितवर्ण प्रज्वलिता॥

त्रिभुवनव्यापिनि दहिन करोति धारि मर्जपुरित कपालधारि

चक्रीकुण्डल कण्ठिधारि हाथे लोचक विभुषिणि॥

चरणे नौपुरे दहिने करटि मेखला नरशिलमाला विभूषिता


(67)


विश्वजननि परमगुह्येश्वरि भवभय तारणि वीरेश्वरी

सहजानन्दश्वरूपिनि (स्वरूपिनि) देविऋद्धिसिद्धि चरण प्रसादायनि॥


77. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी                     ताल : झाप


पूर्वद्वारासित उदयागिरि विविधपुष्प फलवृक्षसंयुता

सुचरसरा गन्धर्वपाशा आदित्य किरणज्वल आभासा॥

ध्रू.॥ पुष्पदल वावक्ष वृक्षादि भ्रमर कोकिल लादेर मणि

अर्चियारे प्रमुदिता विघ्नवारण धुरधरा श्रीसतगुरु आज्ञा दिगंविदिगं पुजिता॥

दक्षिणद्वारे गन्धनादने गिरि निवासित देवासुर संगता

विहंगण गणा भ्रमर निनाद विकाशित पुष्पमनोहरा उतविक्षाव्येन वरये पारा

आमोदभूषय उतसितिक्षे॥

पश्चिमद्वारे सुयेस्थगिरि (सूर्यस्थगिरि) अचन्द्रवृक्षा धनवारा

वैदुर्यरत्ना रसपूर्ण देवदानवगण शेष्यमाना देविष्य माना शिखरविकिर्णा

घनतरूप (धनद) शोभिता॥

उत्तरद्वारेसित रविराजो हिम कनकय पुष्परूता

गंगातिर्थादि वहव्य भावा यक्षयक्षणिगण विरासित नाभिगं शुन्यन्धमनोहर 

सिरया सर्वत्रसिद्धारयभूमि उदसा॥


78. (NC. 51 no. song)


राग : वसन्त                     ताल : झाप


चण्ड आदितल सफलज्ञ

अद्वय विपाक विमर्द्दलक्ष॥


(68)


ध्रू.॥ नाचैश्रीसम्वर नाटेश्वर

वज्रवाराहि गाण्धा (गाढ) आलिङ्गणा॥

अनुहत ज्ञर जन्मतरगिर

करुण शृंगार विराजित रस्य॥

चत्वार चन्द्र रिनंतरे (रिनन्तरे)

विचित्र विपाक विरक्ष (विलक्ष)॥

आलोका आलोकाभास्यं

आलोकर वंदि (वन्दि) प्रभास्वर॥


79. (NC. not collect this song)


राग : पञ्चम                    ताल : माथ


अष्टनारि अष्टप्राकाले (प्राकारे)

अष्टयोगिनि वचने॥

ध्रू.॥ सिरसि (शिरसि) सिन्धुर (सिंदुर) कंजल (कज्जल) स्फुरा

देवि प्रसादेन मोक्षमार्ग॥

नरसत्व अशिरं प्राणकालं (प्राणकारं)

गुरुवाक्येन आरोग्ये॥

कुलवंस (कुलवंश) मातु तत्वफलदं

कुवुद्धि कुचित्तानाश फलदं॥


(69)


तत्व सिरसि (शिरसि) सिद्धिफलदं प्रसादं

जन्म जन्मवजविरासिनि (वज्रविलासिनि) शरणं॥


80. (NC. 4 no. song)


राग : रामकेलि                     ताल : माथ


शून्ये निरञ्जन परमप्रभु शुन्येमाया संहा-उ

भावह चिय संहावता नो नासिम-इ जाम्वु॥

न-उ भव न-उ निर्वाणं तहि एहु सो महासुखवज्र

यो भाव-इ मन भावत सो परसाहयि कर्ज्ज॥

अक्षर मन्त्र विवर्ज्जयो न सो बिन्दु न चित्त

एहु सो परम महासुहो नो भेदि न चित्त॥

जिम परिविन्दु संहावदा तिनि भाव-इ मनभावे

शुन्य निरंजन परमप्रभु नो त-इ पुन्ये न पा-उ॥

जिम जल माझेचन्द्र सहितो स्वच्छ न मिच्छ

तिनि सो मण्डल चक्रडातन ये संहाव्ये स्वच्छ॥


81. (NC. not collect this song)


राग : ललित                     ताल : माथ


चित्त चक्राष्ठा रे हूँ विज संजाता रे निलवन्धित पुल्लित पीठस्थ

खण्ड कपालादि विर प्रचण्डाद्या संपुट निलवर्ण च-उहाथ अतिशोभिता॥


(70)


ध्रू.॥ नमे (नमो) नाथ तुह्म जिन भुवनेश्वर दशदिग स्थित भवतारकरणं

वाह्यकाष्ठा रे आःकारोद्भवारुण कामरूप पीठस्वभाव अकुर्यादिवीरे॥

ऐरावत्यादि संयोगे रक्तास्य वेद वाह वज्रघण्ट खट्वाङ्ग डमरु धारिता

कायचक्राष्ठा रे ओं भव शुक्र वज्रवन्ध पीठ प्रेतपुरी महावारादि

(महावाराहि) विर॥

चक्रवेगाद्यालिङ्गित शुक्ला शुच-उ भूजा इन्दु शुक्लवर्णाभामध्यलंकृता

चतुरविंशविरेश्वर प्रचण्डाद्यालिङ्गित त्रिभुवन कम्पित त्रियानसंस्थिता॥

छत्रिशं वीर देवि एकशुन्य स्वभावा गमने भनयि श्रीकुलिशनील प्रसादां॥


82. (NC. not collect this song)


राग : कामोद                    ताल : खटकंकाल


र्पु(पूर्व) दिगंपति अति नीलवर्णा वे (रे)

प्रचण्ड त्राशनि काक वदना॥

उतराधिपति (उत्तराधिपति) हरितवर्णा

उरुकानन (उलुकानन) भिमयक्षभयहरणं॥

पन्नगाधिपति राक्षा (लाक्षा) रसवर्णा

श्वानानन भिमनागभयहरणं॥

यमपति घोरं गौरवर्णाभा

कोलास्या इव यमभयं हरणं॥

धनंजय (धनञ्जय) पति निलपिताभा

वन्धिभयबन्धन महाक्रोधवदनं॥

पातु धानेश्वर राक्षसभयहरणं

पीतारुणवर्ण लोल्लवदनं॥

भुताधिपति निभुतेकर।

मारुताधिपति लोहित स्यामां (श्यामां)॥

वातारि नाशन द्रंष्टकवदना

भुताधिपति निभुतकरण॥

क्रोधवदनं हरितनि (हरित) नीलाभा


(71)


द्वादशवीरं महाक्रोधवदनं डाकिन्यादि देवि आलिङ्गना॥

श्रीचक्रसम्वर प्रदे (प्रशादे) गाव-इ गित श्रीकुलिशा॥


83. (NC. not collect this song)


राग : वसन्त                    ताल : माथ


भास्कर बिन्दुमण्डल माझे सुशोभिता

पञ्च डाकडाकिनि सुसंवृता॥

ध्रू.॥ नौमि श्रीविराशिनि पाद चरण पुजा

वीरवीरेश्वरिगण द्वन्दालिङ्गणा॥

वेदास्य त्रिनेत्रं वज्राध (वज्रायुध) शुक्लमुद्रा

मौलि कुण्डल कण्ठि मेखला नौपुर॥

पविघण्ट (पवित्रघण्टा) नागचर्मडमरु खट्वाङ्गा

पात्र परशु पाश त्रिशुल मुण्डुमाला॥

पद्म डाकि (डाकिनि) गणाधिप हेरुकनाथं

गुरुपाद श्रिरेधार्य (शिरेधार्य) वेगफलाप्ता॥


84. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी                     ताल : त्रिहूरा


नमामि नमामि श्रीहेरुकचन्द्रशेखर विरा विश्वकुलिश जता (जटा)

पञ्चकपालालंकृत शोभित नरशिल (नरशिर) तनु॥

तेना हूँ हूँ तेना हूँ हूँ सयर (सकल) वियापित शोभित नरशिर

करुणामयसत्व उधारश्रीसम्वरा


(72)


नमामि गजचर्म विभूषित व्याघ्रचर्म षडमुद्रा॥

गाढालिङ्गन अद्वयसमाधि वज्रघण्ट आलि (आलिङ्गण) पदा

नमामि आलिकालि प्रचापित द्वादशभूज भुवनेश्वरा॥

डमरु करोति कुठार त्रिशुला खट्वाङ्ग कपाल पाश वह्मशिरा (व्रह्मशिला)

नमामि चतुर्विंशति पीठेश्वर विर वियापित त्रिनिलोचना॥

छत्रिशं विरविरेश्वर नाथा नमोस्तु॥


85. (NC. 30 no. song)


राग : वसन्त                     ताल : झाप (NC. omit)


जिनवर जननी प्रभास्वर रमणि

विरास-इ (विलास-इ) समरस द्वंदा (दन्दा) आलिङ्गणा॥

ध्रू.॥ निरंसुह सुरय शृंगार संपुर्णा (सम्पूर्णा)

गाढा आलिङ्गण आनन्द नयने॥

चाप-इ सम्भोग सयर धि मयने

राग विराग दु-इ माझे निषर्णा॥

अवजकुलिश संभोग विमुखना (विभूषणा)

सुर नर प्रमुख द्वंदा  (द्वन्द्वा) आलिङ्गणा॥

दहदिह (दशदिश) भुवने श्रीयोगाम्वरा

प्रणमामि ज्ञानेश्वरि आलिंगणा (आलिङ्गणा)॥


(73)


86. (NC. 58 no. song)


राग : रामकेलि                     ताल : माथ


हूँ हूँ हूँ देहधरु संसार तनु

द्वंदा (द्वन्द्वा) आलिङ्गण योगधरु॥

ध्रू.॥ हेवज्र तुह्म तेना हूँ हूँ

तेना तेते हूँ हूँ हूँ॥

सुर नर वंदित (वन्दित) ....


87. (NC. not collect this song)


राग : मधुमन्त                     ताल : दुर्जमान


समिरय हूत भूज कमल धर-इ चक्र सौवर्ण वरजल जयन

प्रस्फुलिय (प्रस्फुरित) दिनमनि सायर गौर मन्त्र कथित युग आलिधपदं

(आलिङ्गणपदं)॥

ध्रू.॥ हूँ हूँ हूँ आः ओं आः हूँ आः हूँ हूँ हूँ॥

मुण्डुमाल व्याघ्र चर्म भुषित षडमुद्रा हाराकार वस शोभाकरं

दह-इथ (दशहाथ) प्रसारि रे मार विदार मन्त्रवक भिषण लिय शमुखं

(समुखं)॥

विश्ववज्र पङ्कशिर नारा शंख शेष रे सोहिय नादवलं

ज्वलित कुलिश घण्ट मृदुतर द्विभूज हेरुक आलिङ्गण लिणचियं॥


(74)


समल सुमह वोचिय नाद-इ नाटक रङ्गेन समल भुवं

अवधुव पयिश-इ सहजश्री सम्वर अनिल तरङ्ग नलिन गति॥


88. (NC. 19 no. song)


राग : विभास (NC. omit)                     ताल : झाप (NC. omit)


परम रतो न च भाव न भावक

न च गृह न च श्रावको ग्राहक॥

माश (मांस) न श्वनित (शोनित) मुत्र न विष्ठा

न च घृण मोह न सौच (शौच) न पवित्र॥

राग द्वेषन मोह न ईर्षा

न च पेशुन्य समान न दर्प॥

भाव अभाव न मित्र न मन्त्र

निरतरङ्ग सहज विशुद्धि॥


(75)


येन तुये न तु बुद्ध तिलोक 

तेन तु तेन तु बुद्ध मुच्य॥

लोका भुद्यति वेत्ति न तत्व

तत्व विवर्जित सिद्धि न लप्ये॥

तस्मा तु गन्ध न शब्द न रूप

नैव रसे न च चित्त विशुद्धि॥

स्पर्श न धर्म न सयर विशुद्धि

शुद्ध स्वभाव न जगो जगु जन्मे॥


89. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी                     ताल : त्रिहूरा


देव दिगम्वर धवर (धवल) करति गजचर्म विभूषित नाच-इ समभूज नयन 

रन्ते (रत्ने)

भैरव कालिरात्रितल चाप-इ प्रणमामि हूँ हूँकारा॥

उथभराडो सम्वर करुणामय देहा

जन्म जन्म तुजु सरणागति (शरणागति)॥

प्रलयानल जरामरणभयंमिव ज्वलज्वलन्तं सहज गुण जोटिरूप आनन्द 

मुरुति पुष्प शरिरा

जरामरणं भव दुःख विनाशन प्रणमामि हूँ हूँकारा॥


(76)


90. (NC. 67 no. song)


राग : गौडी (NC. omit)                    ताल : माथ (NC. omit)


वाम खत्पर (खर्प्पर) धर दहिन कर्ति

पायल नौपुर मुण्डु (मुण्ड) नरशिर माला

ध्रू.॥ देवि नाच-इ एकजटि वज (वज्र) योगिनि

त्रिनि नेत्र देवि त्रिभुवन पयिसे (प-इशे)॥

काल मृत्यु द्वि-इ पाशेन वधिरे (वन्धिरे)

राग द्वेष मोह कर्तिन च्छेदे॥

स्थुर (स्थूल) सुक्ष्म (सूक्ष्म) देवि त्रिभुवन देवि

शुन्यपात्र देवि शुन्य स्वभावे॥

शृष्टि (सृष्टि) संहार राया करुणक राया

मोक्षमार्ग तुह्म देवि सेवित देवि॥


(77)


91. (NC. 39 no. song)


राग : नाट                     ताल : जटि (NC. omit)


सकल जगत गुरु सम्वर विरा

अनुपम करुण करित (कलित) सुखचित्तो॥

सम्वर सम्वर कुरु म-इतोष

विविधि कल्प विनासन (विनाशन) रुधं॥

देवि वाराहि तुह्म मण्डित देहा

भवभय हरण विशाल विशेषो

सकल विघ्न हन्ति मतिप्रति रुगो

रतिपति स्वर्ग निवास रूढा (रुद्धो)॥

भावाभाव कृताहति मतिचित्तो

अनुपम सुखरस मग्न सुखचित्तो॥


92. (NC. 42 no. song)


राग : वराटि (NC.) वराडि कामोद)                   ताल : खटकंकाल (NC. omit)


सर्वाथारे काल विकाले स्फुलिया उले त्रिनिकाले

सर्व विरूपते पूजिक जिमजल रगंले माया॥


(78)


हूँ तुँ जं तु वज कवाले (वज्र कपाले) म-इ परिश्वहियं वलिया रे 

पञ्चामृत रस कुलिश उल्लोल गोकुदहन पञ्चशाले॥

ओं आः हूँ फट कवलिय वुले चिय समय रविशशियारे

चरण फरण संहारे अद्वय महाकुरुभूते॥

इन्द्र यम यक्षारे भुत वहि वायु रक्षारे

चन्द्रसूर्य दु-इ कन्धारे ताल पाताल अष्ट नागा॥

इदं वलि जिघ्रारे फल धुपमांस स्वहिया रे

क्षान्ति भ (क्षोभ) फट कन्धारे दानपति रे सर्वकार्य साधरे॥

कर्णपा वलि अधिष्ठान वलि मारभय भंगारे

राजा दानप्रति सयर सत्व आयु आरोग्य॥


93. (NC. not collect this song)


राग : कर्णाटि                   ताल : झाप


नील गयने सोभित (शोभित) अंगे (अङ्गे)

त्रिमुख त्रिलोचननि कमल स्वभावे॥

भावारे श्रीयोगाम्वर विरा

योगिनि ज्ञानेश्वर करुण नाचयि॥

डाकिनि मण्डल चक्रफलिया

मण्डल कोणे विदिगन संस्थिता॥

वजिं (वज्री) घोरि वेतालि चण्डालि

सिंघिनि व्याघ्रि जम्बुक उलुकिनि॥


(79)


डाकिनि द्विपिनि च-उसिकं भोजनि

जन्म जन्म भय दुख विनासिनि (विनाशिनि)॥


94. (NC not collect this song)


राग : शृङ्गारमालश्री                     ताल : माथ


षोदश (षोदश) भूज चतुमुख (चतुर्मुख) त्रिनेत्र

नीलवर्ण चतुर्पाद पिङ्गलकेशा॥

तेना हूँ तेना हूँ तेना न हूँ हूँ हूँ

दहिन खत्पर वामपात्र आलिणपदं॥

हरिहर ब्रह्मा इन्द्र चतुरमार

कृष्णवर्णद्विभूज त्रिनिलोचना॥

दहिन कर्ति वाम खट्वाङ्ग पात्र

नमो हूँ श्रीहेवज्र नैरात्मा देवि


95. (NC not collect this song)


राग : तारावली                     ताल : माथ


हूँकाल (हूँकार) संजात शुक्रदेहा

द्विभूज एकास्य त्रिनयणं (त्रिनयनं)॥

ध्रू.॥ तेना हूँ हूँ तेना हूँ हूँ

चक्रि कुण्डल वल (वर) कण्ठि सोभा (शोभा)॥


(80)


रुचक केपुर (केयुर) ब्रह्मासुत्र (ब्रह्मसुत्र)

मेखल नौपुर पायल॥

घाघर व्याघ्रचर्म जटा मकुट विश्ववज्र

शुक्लमुण्ड अर्द्धचन्द्र चक्र॥

सव्ये कर वज्र वामे घण्ट

भैरव कालि आलिणपदं॥


96. (NC. not collect this song)


राग : कर्णाटि                    ताल : झाप


तिन हूँकार प्रज्वलित किलण (किरण)

उर्द्ध पिङ्गल केशा श्रीहेवज (श्रीहेवज्र) लाया (राया)

ध्रू.॥ णील (नील) वर्ण देवि करति कपाल धरा

जगत मोक्षकरि श्रीनैरात्मा देवि॥

क्रोधवीर दिष्टि आलिगण (आलिङ्गण) समाधि

षोदश (षोडश) भूज करोटक धरिया॥

भस्म (भष्म) विभूषित षटमुद्राभरण

व्याघ्रचर्म परहिर (परिहित) नरसिल (नरशिर) माला॥

बह्मा (ब्रह्मा) महेश्वर नारायण (नारायन) इन्द्र 

चाप-इ च-उचरणे चतुर्मार मर्दन॥


(81)


97. (NC. 52 no. song)


राग : विभास                     ताल : झाप


कटि-ए करुत देवि रुद्रमाल च्छादे (हाथे)

सहज आनन्द वाच्छलि देवि॥

ध्रू.॥ नाच-इ ए कालि त्रिभुवन ब्रह्म स्ये ए कालि

सया (स-अल) रवि ब्रह्म स्ये तुह्म ए कालि॥

तुह्म वाच्छलि देवि नाना रूपे

एकपाद तोरि गयेने (गगने) र-इया (ल-इया)॥

तुह्म वाच्छलि देवि जगत उलनि

तोह भरांत श्रीहेरुव ल-इया॥

पालि भैरव उभय संचरने

सचराचर वज (वज्र) योगिनि नाच-इ॥


(82)


98. (NC. not collect this song)


राग : गुर्जरी                     ताल : माथ


करय करोटक षोदश (षोडश) भूजा हंसा पंक्ति जैसा

षमुद्रा (समुद्रा) भरण धरिय करसां

धिर नाच-इ श्रीहेरु लाया (ल-इया)

मेरु मण्डल वसहे पदमार

वह्मा चापि रे चतुरमुख हरिहर इन्द्रा

सहज योगिनि लेया (ल-इया) दिगंवयि (दिगम्वरी) चण्डर (चण्डालि) माझे

वह्मायनि (व्रह्मायनि) इन्द्रायनि राच्छि गौरि उपभावे

स्वामि हमारे चाप-इ घरे श्रीहेरुव वज्रलाया

शशि नवक-इ (चनक-इ) कुममलक (कूर्ममलक) गिरि राया

साथ (सात) समुद्र हलेक (हरेक) लाया गावन्ति कर्ण राया॥


99. (NC. not collect this song)


राग : वसन्त                    ताल : झाप


कृष्णवर्ण तनु द्वादश भूज ग्रिव्ये

च-उमुख चरण भैरवकालि॥

ध्रू.॥ नाचै रे श्रीसम्वर लाया

वज्रवाराहि आलिंगण (आलिङ्गण) सोभित (शोभित) नाचै रे॥

डाकिनि रामा खण्डारोहा

रूपिनिपञ्चजसिद्धिप्रदायकं॥


(83)


कायवाकचित्तवज्रशिरे

कोरे कौमुख च-उद्वारे॥

क्रिदन्ति मण्डल छत्रिसं (छत्रिशं) विरेश्वर

प्रणमामि अद्वयसिद्धिप्रदायनि॥


100. (NC. not collect this song)


राग : मालव                     ताल : झाप


गौरि चौरि वेतालि घश्मरि पुष्कलि (पुष्करि)

सर्वलि (शवरि) चण्डालि डोम्बि मण्डल प्रवेशा॥

ध्रू.॥ आनन्द नाच-इ हेरुव र-इया (ल-इया)

नैरात्माशनिकोले र-इया (ल-इया)॥

चरणघाघरे वे पञ्चभूषण विभूषित चण्डमाला दिगम्वरा

पंचामिय (पञ्चामृत) रस गोकुदहने॥

दलद्रव्ये भूज तपं मृमयना

विमर (विभल स्यम्वु) कुसुमतं वोले॥

भन-इ अमोघवज्र हेरुव कोले॥


(84)


101. (NC. not collect this song)


राग : मल्लार                     ताल : झाप


विश्वकमलोपरि पव्ये कपाल सुर्यय्था

हूँकार संजात कृष्णवर्ण देहा॥

नमामि श्रीहेरुववज (श्रीहेरुववज्र) त्रिभुवन नाथा

उर्द्ध पिंगल (पिङ्गल) केश मौलि विश्वकुलिशा॥

त्रिमुख षट्भूजा प्रतिवक्र त्रिनेत्रा

मुल कृह्न (कृष्ण) शित (सित) रग्त (रक्त) समय तलो॥

प्रथम भूजद्वय वज (वज्र) घण्ट करति त्रिशुल धरा

षडमुद्राभूषण नरशिलमाला (नरशिरमाला)॥

सकल ऋद्धि सिद्धि मोक्ष प्रशादा (प्रसादा)॥


102. (NC. 22 no. song)


राग : रामकेलि                     ताल : जटि


उर्द्ध रग्त (रक्त) नेत्र पिङ्गल (पिङ्गल) केशा

नाच-इ हेरुक उनमोरुव (उन्मत्त) भेशा (वेशा)॥

ध्रू.॥ हेरुव हेरुव दे मोरु कोला

द्वंवि (डोम्वि) चण्डालि रेया (ल-इया) भूर्भूरुण भोरा॥


(85)


वामे द्वंवि (डोम्वि) दहिने चण्डालि

माझे विरास-इ (विलास-इ) हेरुव वारि (वालि)॥

दहिने डमरु वामे खट्वांगं

अष्ट योगिनि मेरि हेरुव संगे॥

गावन्ति कर्णपा हेरुदास (हेरुवदास)

कायवाकचित्त हेरुव निलस्य (निरस्य)॥


103. (NC. not collect this song)


राग : तोडि                     ताल : माथ


दिनकर मण्डल मंदिरे (मन्दिरे) वा रवि शशि वह्नि द्वादश नयना

निर (नील) श्याम लोहित पिताभा क्रोध माधि (समाधि) विकट नयना॥

ध्रू.॥ योगिक (योगिनि कर) सरुवेज्ञेयालिगण (स्वरूपे आलिङ्गण) हेरुका

कुलिश घण्ट गजचर्म डमरु वे धरिया तु परशु करति पाशा॥

वाम खट्वाङ्ग कपाल त्रिशुल धरिया रे वह्म (व्रह्म) कपाला

आलि दु-इ चाप-इ यागांध नाटनवर (नाटनरवर) सुप्रसारि रे॥

विश्वकुलिश अर्द्धचन्द्र सुत भूषिया पंच (पञ्च) कपाला

वाराहि आलिङ्गण शोभा त्रवक भीषण वदन नयने॥


(86)


चक्रि कुण्डल मुद्रा शिलमाला (शिरमाला) छत्रिसं (छत्रिशं) विरगणायका

सहजानन्दे फलिया रे मण्डल प्रणमामि श्रीहेरुव लाया (राया)॥


104. (NC. not collect this song)


राग : गौडि                     ताल : झाप


चक्रि चक्रि सोदिरे दहिनि चण्डालि

ईस्थं काले अमोघसिद्धि रत्नसंभव (रत्नसम्भव)॥

ध्रू.॥ जिया हेरुव वज्रवाराहि

क्षन (क्षण) हूँ छादि (छाडि) रे निलवर्णभावे॥

हेथंकारे आधति हेरु (हेरुवो) सहज श्वभावे (स्वभावे)

सर्वसं उद्धारि रे शिरे चक्रि मुण्डे॥

पञ्चतथागत कण्ठधारि इन्द्रि

प्रज्ञोपाय उद्धारि रे डमरु खट्वाङ्गे॥

मोरु श्रीहेरुव रुण्ड मुके (मुण्डके) वागे

भनन्ति गोसामिनि अमान भावे॥


105. (NC. 53 no. song)


राग : विभास                    ताल : माथ


ए महि मण्डल माझे उतभविता

ससुमना (सुषुम्ना) सना सहज समानता॥

ध्रू.॥ देवि भ्रमशित उर्द्धगता

गगण शिखर माझे चणगता॥


(87)


दहि (दहिने) करटि रसपात्र धारि

वाम खट्वाङ्ग ध्वजधारि (ध्वजधारी)॥

सर्व कोलमुखी माल (मार) संत्राशिता

नरथिल (नरशिर) मार विरता॥

गावन्ति सुरतवज (सुरतवज्र) दुर्गति भीता

जन्म जन्म तुंजु प-इस्येविता (प-इसेविता)॥


106. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी                    ताल : झाप


जिनजिक रत्नोधृ (रत्नोधृक) आलोकिक (आलोलिक) प्रज्ञाधृक

रागरति द्वेषरति मोहरति वज (वज्र) रति रे॥

ध्रू.॥ हूँ नमो हूँ हूँ नमो हूँ॥

प्रभु श्रीयसमाजा वज्र अद्वयसंक (शङ्क) राजा

सुरतवज (सुरतवज्र) देवि संत (सन्त) जो-इ-आ (जा-इया) जानमि सहजक 

राजा

रूप सवद (शब्द) गन्धा रस वजा (वज्रा) रति साय सुवजा (सुवज्रा)॥

आजित क्षिति गर्भ कुलिशक राजा गगण गर्भधा राजा

कमलकुलाकुल वरय (वलय) धवरा (धवला) भिस्कंभिन समन्तभद्रा॥

प्रज्ञान्तकृता वरटकि राजा निल डण्ड (दण्ड) महावल

उष्णीषचक्र सुभ (शुभ) राजा रे सोभित (शोभित) विम्वमण्डला॥


(88)


107. (NC. not collect this song)


राग : पञ्चम                     ताल : माथ


हूँकार संजात सहजानन्द रूपधरा वसुलोक पाल चैत्य संवृता

कावाकचीत्त (कायवाकचित्त) सद्यमण्डल विविध पूजिता॥

ध्रू.॥ प्रणमामि श्रीद्विभूजसम्वर वज (वज्र) वाराहि शुन्यता करुणामय

अभ्यन्तर ज्वालावलि चर्तुद्वार चतुर संकुटागार मनोहरा॥

दहिन कर वज (वज्र) वामघण्टा जटा मकुट अर्द्धचन्द्र गजचर्म भूषिता

चरण नौपुर झृझृंरा विभूषित मुण्डमाला दिगम्वर देहा॥

शृष्टि (सृष्टि) संहारनाथा आनन्द नाच-इ अद्वय समाधि व्यापिता

षडमुद्रा गाढालिङ्गण मण्डल परमानन्द मुरुति॥

गावन्ति रत्नवज्र भन-इ गीता गुरु चरण शिलेगत (शिरेगत) धरिय

खङ्गति भय दुर्गति नाशन अष्ट ऋद्धिसिद्धिवल प्रशादा (प्रसादा)॥


108. (NC. not collect this song)


राग : कर्णाटि                     ताल : माथ


विश्वसरोरुह दिनेस (दिनेश) मण्डल

वर्ज (वज्र) योगिनि आलिङ्गण नाच-इ॥

ध्रू.॥ नमो हूँ श्रीहेरुव लाया (राया)

हूँकार संभव (सम्भव) कृष्णवर्ण देहा॥

त्रिमुख षटभूज शुक्लारुण त्रिनेत्रा

विश्वकुलिशा द्वेन्दु (इन्दु) जटा मुकुट॥

प्रथमभूज द्वय कुलिश घण्टा

द्वितीय भूज दन्ति चर्मोतरिया॥

त्रितीयभूज डमरु खट्वाङ्ग कपाल

षटमुद्रा मुण्डमाला विभूषिता॥


(89)


आलि कालि दु-इ आलिघ चाप-इ

प्रणमामि चरणे सिद्धि प्रदाता॥


109. (NC. not collect this song)


राग : कामोद                     ताल : खटकंकाल


काकानन भीमाङ्ग निलवर्णभा (नीलवर्णाभा) सव्ये डमरु करति उघानं

इतरेतु पात्र खट्वाङ्ग पञ्च प्राचो द्वारे स्थित प्रत्यालिणचरणं॥

ध्रू .॥ उरुकास्य (उलुकास्य) घोराकं श्यामवर्णाभा दक्षिण घनककर्तिदधानं

वामपात्र खट्वाङ्ग शर उदिचि द्वारे स्थित प्रत्यालिण पदं॥

स्वानानानन (श्वानानन) भीमाङ्ग रक्तवर्णाभा सव्ये घनककर्तिदधानं

दुतरे पातुत्र (पात्र) खट्वाङ्ग वाणप्रतिचि (प्रतीची) द्वारे स्थित प्रत्यालिण-

चरणं॥

सत्करानन (क्षुकरानन) घोराङ्ग पीतवर्णाभा सव्ये डमरुकर्तिदधानं

वामपात्र खट्वाङ्ग ईषु प्राचिद्वारे स्थित प्रत्यालिणपदं॥

त्रिभुवननाथ सुरन (सुरनर) वन्द्या वेदवदना त्रिनेत्र सुशोभा

द्वादशभूजा षडमुद्रांगाचक्र मध्येस्था  आलिणचरणा॥


110. (NC. 85 no. song)


राग : शृङ्गारमालसि (शृङ्गारमालश्री)                    ताल : माथ (NC. omit)


द्विभूज एकमुख त्रिनेत्र निलवर्ण रविशशि मण्डल माझे

विश्ववज्र अर्द्धचण्ड (चन्द्र) जटामकुटधरा हाडाभरण सुशोभिता॥


(90)


ध्रू.॥ तेना हूँ हूँ तेना हूँ हूँ तेना तेते हूँ हूँ हूँ॥

वज्रवाराहि आलिङ्गण सम्वरा भूजद्वयन (भूजद्वयेन) वज्रघण्टाधरा

कालिभैरव पाद भरणा दिगंविदिगं काकाश्यादि यमडाकिनि देवि॥

श्रीवज्रदेविचरणप्रसादेन सतगुरुचरणशिल्यगत (शिरेगत) धरिया

गावन्ति श्रीरत्नवज्रकुलिशा जन्म जन्म श्रीसम्वरणा (श्रीसम्वरशरणा)॥


111. (NC. not collect this song)


राग : धनासि (धाने श्री)                     ताल : चमपति


गजमुख त्रिनयन तांदव (ताण्डव) परवत नृत्याधिपति गणेश्वरा

मणि मुक्ता रत्नाभरण तरुणि किरण संकाश॥

ध्रू.॥ मालिया (मारिया) विघ्न मालिया (मारिया) दर्प मालिया (मारिया) दुखः

विनाशनं

मालिया (मारिया) माल (मार) संत्राशा मेरुव (हेरुव) पद्म दुखविनाशिता॥

परशु वाना कुशवज्र खङ्ग भिंदियाल दहिन करा

मुसल धनु खट्वाङ्ग खत्पर करति वामे॥

विचित्र वक्त्र कन्दु कटिव्ये शाजय (साजय) मणि मण्डीता

लम्बोदर तरधृत (तलधृत) लम्बोधर श्वभा (शोभा) पायल झिलिझिलि

(झिरिझिरि) वाजन्ते॥

रत्नातरधृत (रत्नातलधृत) रत्नाज्वलिता मुषिक अतिसुन्दरा

दिनदत्यासम सुख दाता नमोस्तु नमोस्तु गणाधिपति॥


(91)


112. (NC. 83 no. song)


राग : तोदि (तोडि)                     ताल : खटकंकाल


पञ्चकपाल धालित (धारित) मौलि पञ्चज्ञान पञ्चमुद्राभणा (पञ्चमुद्राभरणा)

नरशिल (नरशिर) माला गृव्ये (ग्रीव्ये) श्वमा (शोभा) व्याघ्रचर्म कति 

(कटि) भूषित लयना (नयना)॥


ध्रू.॥ हूँ हूँ हूँकार संजात वदना पर्व (सर्व) लम्बोदरा नलसम (नीलसम) देहा

क्रोधाधिपति श्रीमहाकाला

पञ्चामृत दर्पभवलिना भोयन वह्म (व्रह्म) कपालधरा॥

रक्तवतुर (रक्तवर्तुल) त्रिनि नयना घोरभयंकर (भयङ्कर) भिषम (भीषण)

वदना 

उर्द्धप्रज्वलिता पिंगल (पिङ्गल) केशा उल्लुमत्त (उन्मत्त) भोश

करुणामय॥

करति कपालधारि खट्वाङ्गा नागाकुण्डल हा (हारा)

नागशिल (नागशिर) सिद्धा नौपुर नागा अष्टनागा आभरण सुशोभा॥

जिनवर मौलि धारिण मे ता बुद्धशासनशा रक्ष (रक्षक) विरा

प्रेतारुण तांदव (ताण्डव) भावा साश्वत (शाश्वत) कुलिशा अत्तर 

(अनुत्तर) शरणा॥


(92)


113. (NC. not collect this song)


राग : मल्लार                     ताल : झाप


एकवदन रत्नमुकुट आलंकृता (आलङ्कृता)

चतुभूज (जतुर्भूज) खड्ग पुष्तक (पुस्तक) सरदानु (शरधनु) धारि

ध्रू.॥ नमा (नमामि श्रीमञ्जुश्रीपद्मनृत्येश्वरा

सयर (सयल) आसा (आशा) परिपुरित उधारिता

दहिने श्रीगणपति वामे श्रीमहाकाल

सगण मण्ड (मण्डल) माझे प्रज्वलिता स्थित

शृष्टि (सृष्टि) संहार लाया (राया) विश्ववियापिता

अष्टभय वहूव्याधि दुरित हरणा

वज्रधर प्रसादि रे दास भन-इया

गुरुचरण मोरु सिद्धिवल प्रसादा


114. (NC. 71 no. song)


राग : गुर्जरी                     ताल : जटि


उरगाभरण श्रीललित तनु शोभा

इन्द्रनील द्युति पिङ्गल केशा॥

जगदु कम्प कृपागुण देवि

दुष्टमार विनाशिनि देवि॥

रक्तनयन त्रिनि रुद्रमाला

खर्ङ्ग करटि कपाल नीलोत्पला॥

व्याघ्रचर्मवस्त्र प्रत्यालिणा

सर्व लम्बोदर सर्वाक्रान्ता॥

चरण शरण श्री-उग्रतारुणी माता

भन-इ अमोघवज्र चरित गीता॥


(93)


115. (NC. not collect this song)


राग : रामकेलि                    ताल : जटि


जिनवरतनय तिभुवन (त्रिभुवन) श्रीकाप्रोतल (श्रीकापोतल) निवासय

निर्मर (निर्मल) मणिना

नेपाल मण्डल माझे शशिभन (सुशोभित) किरणे जगत मण्डल माझे

मणिना॥

ध्रू.॥ त्रियोगतिगंभीयारे (गम्भीयारे) अवतारया रे देव प्रणमामि तुमंगललोकेश्वर 

देव

सिद्धायोगि वन्धुदत्त परिक्रमया भुवंपति चुडामणि नरेन्द्रदेव॥

रात्रिकमल विम्वुप्रकाशित वोधिया रे वामकमल धर हाथ

तुम्ह शुभरन्ते रोग कुष्टक दारिद्र दुखभयहरणा॥

हूँ हूँ भगवति नमामि श्रीवुगमल लोकेश्वरदेवं

नमामि नमामि श्रीनरेन्द्र देव स्वर्गमध्ये पातालदेवं॥

दशभूमि द्वात्रिशत लक्ष्मण धरिया जगतनाथ अभयदाता

श्री-अमृताभ (श्री-अमिताभ) शिल्यगत (शिरगत) धरिया श्रीलोकेश्वर शरण-

गतियं॥


116. (NC. 84 no. song)


राग : मङ्गलवसन्त                    ताल : खटकंकाल


मधुरिपु त्रिपुरा दु-इ निकुराला

सकल देवगण वन्दित चरणे॥

ध्रू.॥ मैत्रि (मैत्री) आदिबुद्ध श्रीमञ्जुकुमारा

त्व (त्वं) अभिवंधुलि (अभिवंधुरि) पद्मनृत्येश्वरा॥


(94)


कुंकुम (कुङ्कुम) रुचिरा सुरचिरविषमा

शुन्या गम्भीरकरुणाविहारा॥

विषय विभकुट (विषमकुट) पारगम (पारङ्गम) न सा

विश्ववियापित शिवगुरु स्वयमभु (स्वयंभु)॥

सतगुरुचरणे विन्दु आराध्य

गावन्ति तव गी (गीत) पवनकुलिशा॥


117. (NC. 31 no. song)


राग : वराटि                   ताल : माथ (NC. omit)


शत शत हाथ्ये तोला मण्डलकरो कोटि हाथ्ये तोला देहा

कोटि हाथ्ये तोला योगिनि विन्दुयारे वास्फचित कर (वाकचित्तकाय)

देवा॥

ध्रू.॥ ओं ओं ओंकाल (ओंकार) मण्डल लो स्फरिना रे योगिनि वृन्दयारे

वजघातेश्वरि (वज्रघात्वेश्वरी) कण्ठ आलिंगण (आलिङ्गण) तास्फु

सवाल मझे (माझे)॥

पूर्वचक्र चिह्नुयारे दक्षिण रत्न विस्फुलिया रे (विस्फुरिया रे)

पश्चिम पद्मप्रकाश रे उत्तर खड्ग धरिया रे॥


(95)


संपुट योग भराण्ड निशिय स्वकटरिया (स्वकटिविया) रे

कायवाकचित्त मण्डल रोफणि नार गगण कुहेदिया रे॥

रूप सरूप (स्वरूप) शब्द गन्धर्वश (गन्धवर्ण) इथि मिलिया धर्मधातु

हो-इ

कर्णपार (कर्णपाद) मण्डल चर्या गावय वाहिर पुजन हो-इ॥


118. (NC. 92 no. song)


राग : भैरवी (NC. मालश्री)                     ताल : त्रिहुरा (NC. omit)


नमामि नमामि जिनधातु करंदक चतुरमुरुति आलिंगिता (आलिङ्गिता)

पञ्चज्ञान पञ्चधातु श्वरूपा (स्वरूपा) बुद्धधर्म आलयश्वरा॥

ध्रू.॥ तेना हूँ हूँ तेना हूँ हूँ जगत संसार उधारिया मनोहर नमोस्तु पञ्चजिनेश्वरा॥

नमामि नमामि श्रीशान्तिपुरेश्वरा ऋद्धिसिद्धिवलप्रदायनि

दुरितहरणे सर्वपाप क्षयंकर (भयंकर) दानपुण्यय हू मोक्षप्रदा॥

नमामि नमामि धर्मधातु वागीश्वर षोडश दुवाल (दुवार) परिमण्डिता

षोडश तोर रुणंरूणंकार सर्वदेव परिमण्डिता॥

नमामि नमामि वागीश्वर मण्डल पद्मगिरि निवासिता

सत्वविरमोहिता (विमोहिता) दुखविनाशित प्रणमामि जिनरक्तेश्वरा॥


(96)


119. (NC. not collect this song)


राग : नाट                     ताल : जटि


नमामि नमामि जिनधर्मधातु भू (स्वयंभू)

त्रिभुवन अनुतर (अनुत्तर) धर्मधातुवागीश्वरं॥

ध्रू.॥ नमामि नमामि जिनपञ्चजिन नमोस्तु

दशभूमि द्वात्रिशत महासुख राया॥

श्वर्ग (स्वर्ग) मध्ये पाताल भुवने श्रीकापोटल

य (ए) च-उ निरंजन (निरञ्जन) महामुनि धरा॥

धर्मश्रीमित्र ज्ञानेश्वरि मित्र

नेपालमण्डल माझे सुरारूपि (सुरा स्वरूपी)॥

वामभूज पुस्तक धनुधरा

दहिणे तृष्णा (तिक्ष्ण) खड्गेश्वरधरा॥

श्रीलोकेश्वर मण्डल महासुख राया

राजाधिराज श्रीनरेन्द्रमल्लदेवं॥

श्रीवज्राचार्य वन्धुदत्त आचार्य

भन-इ वाकवज्रगित चरिता॥


120. (NC. not collect this song)


राग : नाट                     ताल : जटि


सकर (सकल) जगत संसार पहं (पारं)

सर्वरूपधर हर्ता कर्ता हं॥

देवि त्रिभुवन एकु अचला

जगतबुद्धमेयं (मयं) सर्वमिदं रूपोहं॥


(97)


अहं बुद्धि अहं सिद्धि सथावर (स्थावर) जगत मोहं

अहं स्त्री अहं पुरुष नपुंसकोहं॥

देवा सुभहं (सुराहं) जन्म जनकोहं

अहं जन्म अहं मृत्यु विघ्नसिद्धिहरं॥


121. (NC. not collect this song)


राग : निषाद (NC.) निवेद)                     ताल : माथ


कमल विकशित स्थिति भास्वर कुमुदप्रिय वर्णसम देहा

चतुर वदन कुवलयदलपद्मनेत्र प्रकाशिता॥

ध्रू.॥ नमामि नमामि श्रीमहामञ्जुश्री सकल गुण राया सुरत गुरु

कुमति दहन ज्ञानवरप्रद सर्वज्ञ ज्ञाननिधि पारिता (पालिता)॥

प्रथम कर द्वय वज्रघण्टाधर मुद्रा आलिङ्गण राजिता

द्वितीय अङ्कुशधर तृतीयज्ञानस्कन्ध चतुर्थ खर्ड्ग सर्वक्षर धरा

अभय भूजपाश भुवनधर्मचार्य चतुर्थ वाम धृ (धृत) पुस्तका

रत्नमुकुट केशी प्रज्वलित किल्विषस्न मध्यस्त रुचिवरा॥

निर्वुद्धि बुद्धि हो-इ रे मितभामिता सर्वज्ञ ज्ञान विपु (विपुल) सागरा 

एहूँ शरणागति परमादिवज्र जन्मने॥


122. (NC. not collect this song)


राग : कर्णाटि                     ताल : झाप


श्रीमञ्जुनाथवर महाचिन विजया

चन्द्रहास खर्ड्गधारि नागवासन हृदस्थ हूँ॥


(98)


नमामि नमामि श्रीमञ्जुकुमारा

जगदीश्वर जगतगुरु भुवन व्यापिता॥

पुस्तकहार शुभ परमगुरु लाया

श्रीधर्मधातुस्थाने नेपालमण्डललंकृता॥

सर्वशास्त्र विशार (विशाल) पण्डित निरञ्जना॥


123. (NC. 26 no. song)


राग : देशार (देश)                    ताल : माथ (NC. omit)


मायाजांल (जाल) विम्वु शदृश (सदृश) द्वरिरा (शरीरा)

मोहमाया न दर्प च्छादिरे (छाडिरे) माया मोह॥

ए शंसार (संसार) असारा असारा

राग द्वेष मोह च्छादि (छाडि) रे नि-रासा (निराशा)॥

अनमिख (अनिमिख) नयन दृष्ट कुरुपा

डम जन्म मरिकिक (मरीचिका) दुखणा रे शुन्य दु॥

सहज शभाव (स्वभाव) नय उदनागत धरिया

एश्व (एसौ) परम संवासर रूरपो॥


(99)


अवधुत उय (उदय) चन्द्र पाय प्रसादा

गावन्ति निरदुख पापभय चक्र तोरि के वोरे॥


124. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी                     ताल : झाप


पवनमण्डलयं विजय रे स्वोद्भव वहिनमण्डल

त्रयमुण्ड (त्रिमुण्ड) परिशुत्र पद्मपात्र भक्तादि परिपुरय॥

इदं वलि गृहनं (गृहणं) हर हर सर्वविघ्ननाशाय नाशाय

चर्तुमारानुत्राशं छिन्द भिन्द दुष्ट विध (विविध) चित्त कान भस्मि कुरु हूँ॥

पञ्चवीज जतद्विजाधिष्ठित पञ्चमृतं (पञ्चामृतं) पञ्चपद्वीपं (प्रदीपं)

समिरय प्रेरित प्रज्वलित ओं जातामृतभय खड्ग॥

ओं आः हूँ तय सुना दशदि ज्वति (दशदिगवती) विरेश्वरी

सकल पियुस (पीयुष) द्रव्य मानित तदेवोरक्ष सुप्रविश्ये॥

ओंकारादि क्रमश विलिनं त्यक्षराधिष्ठित?

दानपतिनां भक्तिमुक्तिपदं भन-इ रत्नवज्रवलितत्वं॥


125. (NC. 98 no. song)


राग : विभास (NC. भास)                     ताल : माथ (NC. omit)


त्रिदल कमल वर्णकुसुम सङ्गे मधुकल (मधुकर) हेरु हरिणा

श्रीविरूपाक्ष खगमुख देविभेदनेपालय थापिता॥


(100)


नमामि श्रीनैरात्मादेवि त्रिभुवनमाता वच्छलादेवि श्रीमृगस्थरि

सयर (सकल) शुराशुर (सुरासुर) वन्दितचरणे अनंग (अनेक) ऋद्धि

सिद्धि वलप्रशादा (वलप्रसादा)॥

नन्द्रनवनमिव (नन्दनवनमिव) चन्द्रनतरुवे (चन्दनतरुवे) अनंग (अनेक)

कुसुमपारिजातवने

नित्य गङ्गासम वागमति तोथी अनेग (अनेक तीर्था सुरक्षत्र वदनं॥

अष्टभैरव अष्टयोगिनि देवि अनेग (अनेक) सुरक्षत्र पारं

अष्टमहाभय दुरित निर वारुनि अनेग (अनेक) विघ्न विवारुणि

(निवारुणि)॥

विश्ववियापित वारुणि देवि अखय निरञ्जन जोतिमय

अभिमत सुखफलदायनि देवि जन्मजन्म तुंजु पायशरणा॥


126. (NC. not collect this song)


राग : तोडि                     ताल : माथ


अष्टचत्वारिंशत पद्मदल माझे हूँ बीजकृष्णार्द्ध श्यामार्द्ध देहा

णिल (नील) हरित रक्तपीतवर्णाभा सप्तदशास्ये एकपञ्चाशं

(एकपञ्चाशतं) नेत्रा॥


(101)


मुख भृष (भीषण) सन्निभा विश्ववज्रोर्द्धन्दु षटसप्तभूजा

प्रथम पुट वर वह्निज नामा षति सारे डाकिनि वज्रडाकादि॥

द्वितीये आकाश वायु भेदिनिस्या किन्नरी योगिनि सर्वाक्रान्ता

तृतीय वर्तर अग्नि जल ज्ञाना देवि नित्येदक (नित्योदक) हस्तकन्यादि धृता॥

चतरस (चतुर्रस) चतु (चतुर) चित (चित्त) वाग्भाषणागि अष्टशित्यधृक

(अष्टशिरोधृत) च-उशत नाथा

चतु उनं सहस्र बोधिसत्व वृर्ता (वृत्ता) द्वार षोडश द्वात्रिंशत श्मशाना

डाकार्णवमण्डल प्रदक्षणा गुरुपाद शिलेधृत (शिरेधृत) ओंकारवज्र॥


127. (NC. not collect this song)


राग : वराटि (NP. तारावलि)                     ताल : माथ


लम्वकर्ण लम्बोदर त्रिनिलोचना

कण्ठि शोभाकर सिन्धुर भूषिता॥

तेना हूँ हूँ तेना हूँ हूँ तेना तेते हूँ हूँ॥

घाघर नौपुर हाथे परशुधरा

भूजमुख अक्षसूत्रधरा॥

जम्भानि स्तम्भानि मोहनि आकर्षणि

आदि अन्त कल्याणकरक्षा॥

स्वर्गमर्त पाताल त्रिभुवन गणपति

पुजिया रे सर्वकार्यसिद्धि॥


(102)


ऋद्धिसिद्धिवल

जयविघ्नश्वर

त्रिभुवनव्यापिता॥


128. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी                     ताल : त्रिहूरा


नमामि नमामि श्रीहारति महायक्षणि देवि

पञ्चपुत्र परिवारणि देवि॥

नमामि पदुमनि मामकि देवि जगत संसार परिपालिता

जन्म जन्म ऋद्धि सिद्धि मोक्ष मुक्ति प्रशादा (प्रसादा)॥

तेना हूँ हूँ तेना हूँ हूँ॥

नमामि नमामि श्रीसूर्यधनदेव विजय शोभिता

द्वदशवर्ष पुत्र पौत्रि विचारिता॥

नमामि नमामि श्रीचुडानाम भिक्षुणि देवि

धर्मधातु परिचारित नित्येयन्ति॥

नमामि नमामि श्रीमञ्जुवज्रेन गित चरिता

प्रणमामि श्रीपदुमनि देवि ऋद्धि सिद्धि देहि मे॥


129. (NC. not collect this song)


राग : कामोद                    ताल : षटकंकाल


मृगेन्द्रवातोपरिसंस्थिततं बुद्धेग्रि मुद्रांकित शुभ्रवर्ण

श्रीबद्धडाकि (डाकिनि) शशि मण्डलस्थ नकार संजात प्रणमामि शान्तं॥

अश्वेन्द्र सूर्योपरिसंस्थित रत्नांक मुद्रांकित (मुद्राङ्कित) पीतवर्ण

श्रीरत्नडाक रविमण्डलस्थ नकार सञ्जात प्रणमामि शान्तं॥


(103)


मयुर मुद्रापरिसंस्थिततं पद्माकंमुद्राङ्कित रक्तवर्ण

श्रीपद्मडाक रविमण्डलस्य यकारं संजात प्रणमामि शान्तं॥

खगेश शक्रापरिसस्थितं तंक्कपाशमुद्राङ्कित शाद्वरामं

विश्वडाक रविमलस्थणुं (रविमण्डलस्थणुं) मकारसंजात प्रणमामि शान्तं॥

वह्म्रेन्द्र विष्णोपरिसंस्थिततं डमोरिमुद्राङ्कित नीलवर्ण

श्रीवज्रडाक शशिमण्डलस्थं मकार संजात प्रणमामि शान्तं॥


130. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी                     ताल : omit (NP. झाप)


नमामि नमामि श्रीमञ्जुवज्रा सप्तसूर्यासन विश्वविभाश्वरा (विभास्वरा)

पञ्चबुद्धात्मक त्रयवक्त्र पद्मनृत्येश्वर मञ्जुवज्रा॥

ध्रू.॥ तेना हूँ हूँ तेना हूँ हूँ॥

सक (सकल) विद्याधिप करुणामय मुति (मुरति) ज्ञानप्रधान सहिता॥

नमामि नमामि  वागिश्वर भावाभाव रहित चन्द्रसना (चन्द्रासना)

गाढालिङ्गण तद्वय (अद्वय) भुजेन वज्र वज्रघण्टा क्रमात॥

नमामि नमानि मञ्जुकुमारा मुद्रा षडभूषित शोभना

नानारत्नभूषित देहा तन्त्र विधिक्रमशास्त्र धरान॥

नमामि नमामि त्रिभुवनेश्वर सर्वमोक्षार्थ कारणात

ज्ञानमार्ग सदापातु त्रिलोकैक- नमो जगत॥

नमामि नमामि श्रीवज्रसत्व जन्म जन्मतुजु शरणा

सतगुरु चरणे भावप्रशादे (भावप्रसादे) देहितत्व अनुभाव्ये॥


(104)


131. (NC. not collect this song)


राग : शृङ्गारमालश्री                     ताल : माथ


पवन शिखिजल सुमेरु माझे स्थिति विश्वकुलिशोपरि कुटागारं

चतुरमु (मुख) चतुरद्वार तोरण शोभित विश्ववज्रमध्ये हूँकारबीज जं

तेना हूँ हूँ तेना तेने हूँ हूँ॥

नीलवर्ण द्विनेत्र द्वेष ब्रह्मालिङ्गित रत्नमुकुट रत्नाभरण शोभिता

खड्गपाशधर प्रत्यालिन मुरुति द्रष्टाष्टु पीडित भिष्ममुरुतिधरा (भीषण-

मुरुतिधरा)

पुर्वादि दिगस्थ श्वेताचला विरा असि पाशधर चतुरानन्द मुरुतिधरा

विदिगस्थित मोहवज्रादि चर्तुदेव्य कर्तिकपालधृतमोहज्वल रूपा

पद्मावलि ज्वालावलि ज्वालामृतचक्रं शक्रादि दशदिकपति शोभितं

वज्रसत्व जन्मोत्पति श्रीचन्द्रवीरं जन्मजन्मतुजुं पायशरणं


132. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी                     ताल : झाप


नमामि श्रीचण्डमहारोषण देवाशुभरत्न पापभय हरणा

जगत परित्रानं भवदुखहरणं माररिपु द्वेषनत्रु (शत्रु) हरणं॥

हूँ हूँ धरणि मण्डल उपरि रविशशिमण्डल जानुपादनेस्थि (स्थित)

अचलवीरा

गर्जदान (घन) जिमुत नीलवर्णभा (नीलवर्णाभा) निविधगण क्रोध-

त्रिलोकवीरा॥

दहिन खड्ग अनेन पर्णशवरि संपुट खड्ग हस्तः


(105)


भिर्माकलिलालवहा (किलिरावह) पितृवर्ण (पितृवण) ईशदि दुस्तंगण

(दुष्टगण) घाटकरणी॥

श्रीवज्रत उर्द्ध उष्णीषचक्रे श्वेत सहनने महाप्रतिसरा संपुटचक्रहस्तं

खेचर लवि (रवि) विधु विषुद्र (विशुद्ध) सगण ब्रह्मादि दुस्तगण

घाटकरणं।

श्रीवज्रत अधसुम्भराज निलाग्र संहनन स्तम्भीनिसंपुट वज्रहस्तं

भूचरि वेम (व्योम) चित्र पृथ्वीलगण शेषादि दुस्तगण घाटकरणं॥

त्रिभुवणकम्पित ज्वलित हूँकार वज्रहूँकार नीलदेहं

प्रणमामि दशक्रोधराजसर्वप्रसतिं (प्रशान्ति) प्रददं (प्रदानं)॥


133. (NC. not collect this song)


राग : मल्लार                     ताल : माथ


विश्वकमल मध्ये हूँकार सम्भव

खड्गपाशधर रत्नमकुटाभरण॥

नमामि श्रीचद्रमहारोषणवीरं

द्वेषवद्धालिङ्गण भवभयहरणं

पुर्वादिगस्थित कुन्दुरुवर्ण

मोहबद्धालिङ्गण श्वेताचलनाथं॥

दक्षिणपिताचल पिशुन वज्रिसहितं

तप्तकाञ्चनाभं पिशुननाशकं॥

पश्चिम श्रीरक्ताचल लोहितवर्णा

भव राग नाश (नाशन) वज्र-इ॥

उतरे (उत्तरे) दुर्वावर्ण श्रीश्यामाचलं

इर्ष्षान बद्धालिङ्गण जदिज्ञा नाशनं॥


(106)


प्रणमामि त्रैलोक्यवीरं त्रिभुवन दरणं (दहणं)

गुरुपाद शिल्येधृत (शिरेधृत) भन-एक (भन-इ) रत्नकुलिश॥


134. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी                     ताल : त्रिहूरा


नमामि श्रीहेरुकचन्द्रशेखरवीरा विश्वकुलिश जटा

पञ्चकपालालकृंता (पञ्चकपालालङ्कृता) शोभित नरशिर निलतनु॥

तेना हूँ हूँ तेना हूँ हूँ सयर (सकल) वियापित करुणामयसत्व उद्धार

श्रीसम्वरा

नमामि नमामि गजचर्म षडमुद्रा (समुद्रा)॥

गाढालिङ्गण अद्वय समाधि वज्रघण्ट आलिणंपदा

नमामि नमामि आलिकालि प्रचापित द्वादशभूज भुवनेश्वरा॥

डमरु करटि कुठार त्रिशुला खट्टाङ्ग कपालपाश ब्रह्मशिला

नमामि नमामि चतुरविंशति पीठेश्ववीरवियापित त्रिलोचना॥

छत्रिशंम्वीर (छत्रिशंवीर) वीरेश्वरानाथ नमोस्तु॥


135. (NC. not collect this song)


राग : देश                     ताल : माथ


शाश्वेत (शश्वत) वज्र विराजित मौलि रे मकुट केशा

वाम खट्वाङ्ग कपाल धरिया हाथे करति धरिया॥

तेना हूँ हूँ हूँकार सहजानन्द

करुणसंहाव (करुणस्वभाव) शुन्य तुरिनां नमाहु के (रे) सहजानन्दं॥


(107)


अलख सुमण्डल देह धरु धरियाड नरशिर माला

तिनि धा (धातु) तुह्म हर किलय ले (रे) तुह्म देवि एक अनेका॥

स्व स्व विशेषन नर धर खण्ड लोयन क्रोधवारि

भखन (भीषन) दिपनि बहुधा नर कण्ठि सोहिय देहा॥

चारिमारि उपस्थापिया रचल ब्रह्म विहारा

सतगुरुपाय प्रसाद कियेल गावन्ति परमादिवज्र॥


136. (NC. not collect this song)


राग : ललित                      ताल : झाप


जय विघ्नाटक हूँ योगि विज्वलन कपनं ( कम्पन) सु (सुर) असुर

एतर्ज शक्ति पाशधर दुर्दान्त दुष्ट रुपु वध करणं॥

अति घोषनन्दित रौद्रभयङ्कर त्रयलोचन (त्रिलोचन) त्रिलोककरणं

दुष्टतरय महाभय शब्द दशदिग मार सन्त्राशकरणं॥

पञ्चतथागत स्फुरण संहरणं विघ्नविध्वंशन अचलविरा

अतिमध्ये परमादिवज्र...................................................................॥


137. (NC. not collect this song)


राग : हिन्दोल                    ताल : खटकंकाल


हूँ वीज संजात धवर (धवल) वर्णाभा

बुद्धवर नाम महाक्रोध राया॥

नमामि श्रीनन्द वीरेश्वरा

जन्म मृत्यु विनाशिता॥


(108)


रक्तवर्णाभा हूँ बीज संजात

ज्वालामारि नाम महाक्रोधेश्वरा॥

अतिवर (अतिवल) वेग महाक्रोधराया

संवीज सम्भूत महाकृष्ण वर्णा॥

रकार संजात महावर (महावल) नामा

अति जीमुतवर्णा महाक्रोधाधिपं॥

अपराजित नाम महाक्रोधराजा

कंवीज सम्भूत अर्जुनवर्णा॥

जकार संजात अतिनील वर्णा

सम्वर्तक नाम महाक्रोध राया॥

यमान्तक नाम महाक्रोध राया

यंबीज संजात अतिनील वर्णा॥

संवीज सम्भव कोकर्ण वर्णा

केलिकिलि नाम महाक्रोधेश्वरा॥

महाकेलिकिलि संवीज संजात

परासर्वझ अतिक्रोध राजा॥


138. (NC. not collect this song)


राग :  भैरवी                    ताल : झाप


इन्द्र यमान्तक निल सहनन वर्ज (वज्र) वेतालि संपुट चण्डाग्र श्मशाने

वज्रमुद्गल हार विरवीरेश्वर इनद्रादि (इन्द्रादि) दुष्टगण घाटकरणं॥

ध्रू.॥ घ घ घाटय घाटय सर्वदुष्ट रे किलय हूँ फट पाप हरे

ओं वज्र किलय वज्रधर आज्ञा कायवाकचित्त किलयंति (किलयन्ति)

वज्रसत्व आराधिया रे अनुत्तरसिद्धिप्रद मोक्षफलदं॥

यम्पा प्रज्ञान्तक नि (नील) सहनने रौद्रकरंक (कलङ्क) भैरव प्रेत निलय 

अपराजितालिङ्गित दण्ड शुभरण शमनादि दुष्टगण घाटकरणं॥

ध्रू.॥ पश्चिम पद्मान्तक रक्त सहनने ज्वालाकुल पितृवण भृकुट्यालिङ्गित

पद्मान्तक दण्डधर विरविक्रम नागादि दुष्टगण घाटकरणं॥


(109)


उत्तर विघ्नांतक (विघ्नान्तक) निल सहनने एकजटा संपुट गहर (गहन)

श्मशाने

विश्ववज्राङ्कित दण्ड भरणा कुवेरा (कुवेरादि) दुष्टगण घांटकरणं॥

दहनादि घ्वर्तकि जकार सहनने वज्रदेवि संपुट वज्रहस्तं

अटुटहास महापितृवण दहनादि दुष्टगण घाटकरणं॥

नैऋत्ये नीलदण्ड निल सहनने वज्र शृङ्खलासंपुटवज्र दण्डिन

लक्ष्मीवन हूतासन महापितृवणे दिति जाति दुष्टगण घाटकरणं॥

मारुते महावल धवल अनेन वज्रगन्धारि संपुट त्रिशूल हस्तं

घोरान्धकार महाश्मशाने वातादिदुष्टगण घाटकरणं॥

ईशाने अचलनिलाभ सहननवर्णसवरि (पर्णशवरि) संपुट खर्ड्गहस्तं

उर्द्ध उष्णीषचक्र श्वेत सहनने महाप्रतिसरा संपुटचक्रहस्तं

खेचर विविधि विवुद्ध सगण व्रह्मादि दुष्टगण घाटकरणं॥

अधः सुम्भराज नियम (निलाभ) सननसंतभिनि संपुटवज्र हस्ता

भूजरि वेम (व्योम) चित्र पृथ्विसगणं सखादिदुष्टगण घाटकरणं॥

त्रिभुवन कम्पित ज्वर (ज्वलित) हूँकार वीरदेहं

प्रणमामि दशक्रोधराजं सर्वसम्पतिं करमोक्षफलदं॥


139. (NC. not collect this song)


राग : ललित                    ताल : माथ


कल्पादि व्येस्तित (वेष्ठित) अक्षोभ्यमौलिना सिद्धि आलिङ्गण त्रिभुवन

सर्वलम्वोदर ज्वलित हूँकारा अष्टनागाभरण कृष्णावरणा

ध्रू.॥ असुरभयहरण................................................

विविध रिपु खण्डनं विघ्न छेदन इन्द्रादि दशदिग  त्रासन करनं

दहिन करटि धर प्रचण्ड त्रिनिलोचन रन द्वय मनसा सुमतिगमनं

वाम खट्वाङ्ग वल ब्रह्म कपाला भवसमुद्र सागरमन्त्रपात्र

घोर कुन्दुर विर अयुत हास .............................. करालवदना

व्यार्घ चर्म निवासना नरमुण्डमाला अस्थि वलमादन ऋद्धिफलदं गावन्ति

सुरतवज्रसत्व ध्यान ...............................॥


(110)


140. (NC. not collect this song)


राग : भाष (विभास)                   ताल : झाप


पोतका (पोतलका) नगरे आराधियारे

सिद्धायोगि वन्धुदत्त नरेन्द्रदेवं॥

नमामि नमामि श्रीलोकेश्वर त्रिभुवननाथं

करुणामय जगत उधारिया॥

हरिहर ब्रह्मा इन्द्र दिगपाला

नाग यक्षगण वन्दित चरणे॥

तुह्म सुरन्ते पापभय हरणा

व्याधि दारिद्र दुःख हरणा॥

सुखावति भुवने धर्मसरणे (शरणे)

श्रीलोकेश्वर जन्म जन्म सरणा (शरणा)॥


141. (NC. 76 no. song)


राग : नाट                    ताल : जटि (NC. omit)


पद्मोपरि इन्दु मण्डलासनस्थ

सव्येकर वरद वामे पद्मधरं॥

ध्रू.॥ नमामि नमामि श्री त्रैलोक्यनाथ

अमृताभ (अमिताभ) सिरेधृत (शिरेधृत) जटामकुटं॥


(111)


इन्दुकोटि सुनिर्मल सर्वलक्ष्मण संपुणा (सम्पूर्णा)

हिमकर कोटि सम धवर (धवल) सुदेहं॥

भवसम समभावं सर्वभाव श्वभावं (स्वभावं)

नरक गति गतोहतं मोक्षवरदायकं॥

सुरासुर नर चित्तापि (चिर्न्त्तापित) वन्दितं

भन-इ श्रीमहासुखवज्र चरिता॥


142. (NC. not collect this song)


राग : मल्लार                    ताल : झाप


विश्वकमलोपरि विन्दुविम्वां

जकार संजात लम्वोदर देहा॥

ध्रू.॥ नमामि नमामि सम्वरनाथ श्रीवसुधारा आलिङ्गता

सर्वाशा परिपुरय रत्नादि देहि मे॥

हेमवर्णातनु दिव्यालंकृता (दिव्यालङ्कृता)

द्विभूज एकमुख रूपरसं जलि (ज्वलित) शोभिता॥

सर्वक्लेश व्याधि विज पुरन्तं

अपर सच्येन कुलवल (कुलवर) सोभिता (शोभिता)॥

प्राच्यादि विदि (विधि) हुमानिभद्रा

श्व श्व वर्णत यक्षनि यक्ष व्येवस्थिता॥


(112)


143. (NC. 75 no. song)


राग : रामकेरि (रामकेलि)                    ताल : माथ (NC. जटि)


सरोजपत्र नयण (नयन) त्रिभुवननाथ

दहिनभूज अभयमुद्रा धर॥

ध्रू.॥ नमोस्तु नमोस्तु श्रिपंकर (श्रीदीपङ्कर) बुद्ध

त्रिभुवन देवासुर नर पूजिता॥

वामभूजर रुचि (रुचिर) धरा

जगत संसार प्रतिपालिता॥

सुगतिपद वर मोक्षदाता

भवभय हरन (हरण) दुर्गति नाशनं॥

श्रीशाक्यमुनि चरण शिल्ये धरा (शिरे धरा)

भन-ई (भन-इ) श्रीरत्नकुलिश गीत चरिता॥


144. (NC. not collect this song)


राग : धनाश्री                   ताल : जटि (NP. चम्पति)


गजमुख त्रिनयन तांदव (ताण्डव) पद नित्याधिप (नृत्याधिप) अतिगणेश्वरा

मणिमुकुट (मुकुट) आभरण तरुणि किरण संकासां (संकाशा)॥

ध्रू.॥ मालिया (मारिया) विघ्न मालिया (मारिया) दर्प मारिया दुःख विनासनं (विनाशनं)

मालिया (मारिया) मालामाल (मारामार) संत्राशा मेरुव (हेरुव) पद्म दुःख

नाशिता॥


(113)


परशु वानाङ्कुश वज्रखर्ड्ग भिंदितपाद (भिन्दिपाल) दहिन करा

मुशर (मुषल) धनु खट्वाङ्ग धारि खत्पर करटि वामे॥

विचित्र वस्त्रकं रुरुणव शृङ्गार विरवीरेश्वरा भूञ्ज-इ सकल संसार अचला॥


145. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी                    ताल : झाप


अष्टक्षेत्रपाल दिगविदिगं भुवने ध्वंसिल माल (मार) चतुरङ्गे

गगण सिखर (शिखर) गगण रुणं झुणंकारा गगण डमरु घण्ट वाजियारे॥

ध्रू.॥ हूँ हूँ नमामि पञ्चडाकिनि पञ्चजुगति (पञ्चयुवति) ज्ञानडाकिनि सरण

(शरण) जुगेता (युक्ता)

पूर्व-उत्तरपश्चिमदक्षिण च-उ भुवने विघ्नमाल (विघ्नमार) विघ्नखण्डियारे॥

डाकिनि द्विपिनि च-उसिक वोजनि (भोजनि) घोर वेताल संत्राश वदनि

सिंधिनि व्याध्रिनि जम्वुक उलुकिनि खट्वाङ्ग परशु अंकुश हस्ता॥

वर्ज (वज्र) डाकिनि घोर वेतालि डाकिनि चाण्डाल (चण्डालि) दाकिनि

(डाकिनि) चतुर वदना

जिनजननी देवि डाकिनि तुजुपाय शरणा पञ्चमुद्रा भरण विभूषिता॥

खड्ग षेटक (खेटक) वर्ज (वज्र) घण्ट खट्वाङ्ग पात्र परमेश्वरि

ज्ञानदेवि॥


146. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी                    ताल : झाप


सिंहादि श्मशाने बोधिवृक्षा वरुण नागा करुणाभा

...श्मशाने सिलसं (शिरिष) वृक्षा वासुकि नागा गर्जित जलदा॥

नमामि श्रीशेषनागराज नागपुरि निवासितारुणि मणि किरणा

गडोर (गम्भीर) श्मशाने ... वृक्षा तक्षकनागा धुर्नित जलदा॥

...घोरा वर्तन मेघा ज्वालांकुला कङ्कोतक्षक नागा

करंज्ज भैरवा वर्तन मेघा महापद्मनागा चुतक वृक्षा॥


(114)


अतुत (अटुत) हासा संखपाल (शंखपाल) नागा प्रचण्ड मेघा वर्त

महीरूहा

लक्ष्मीवाना करंज्ज वृक्षा पद्मनागा धुर्नित मेधा॥

घोर श्मशाने प्रकृति वृक्षा अनन्तनागा पुरणमेधा

किलि किलि लावा अरुणवृक्षा कुलिशनागा वर्षन मेधा॥


147. (NC. not collect this song)


राग : नाट                    ताल : जटि 


कनक वर्ण एकमुख त्रिनेत्रा

विविधि रत्नालङ्कृत देहा॥

ध्रू.॥ नमामि नमामि श्रीध्वास्कामिनि देवि

त्रिभुवन व्यापित देवि माता॥

दहिन भूज शर दल्पन (दर्पन) धारि

वाम भूजो रत्न भाजन धरा॥

सिंह द्विपो तारुणि ललिता संस्थिता

सुरनर रिपुभय नाशनि देवि॥

जोगिनि (योगिनि) मण्डल माझे प्रमोदित हृदया

भवभय हरणि श्रीवसुधारा देवि॥

शतगुरु (सतगुरु) चरणे मोरु प्रसादे

त्वं देवि चरणे वंदित (वन्दित) पादं॥


148. (NC. not collect this song)


राग : मालव                   ताल : माथ


हूँकार संभव (सम्भव) विश्ववज्र सुवज्रे

सवासन (शवासन) लम्वोदर सांन्द्ररे॥


(115)


ध्रू.॥ नमामि श्रीमहाकाल महाकालि आलिङ्गणा

निलवर्ण (नीलवर्ण) एकास्या त्रिनेत्र मौलि अक्षोभ्ये॥

करनि कपाल खट्वाङ्ग कर धरा

प्रज्वलित उर्द्धपिङ्गल केशा॥

उरगाभरण व्याघ्रचर्म्म निवासनं

पञ्चमुद्राभरण मुण्डमाला प्रलम्विता॥

सतगुरु चरण सिल्यगतं (शिरगतं) धरा

भन-इ श्रीमहासुख चरिता॥


149. (NC. not collect this song)


राग : पञ्चम                    ताल : झाप


द्विभूज एकमुख द्विभूज लोहित वक्त्रा

खट्वाङ्ग पाश त्रिलोक तारणि॥

ध्रू.॥ त्वं वज (वज्र) देवि चक्रिकुण्डल कण्ठि

लोचक (रोचक) मेखल रूनं धारि॥

माल (मार) नरशिल (नरशिर) कण्ठ धारिता

त्रिनि भुवनेश्वरि वज (वज्र) योगिणि (योगिनि)॥

दहिन करति वाम कपाल

दिगम्वर मुकुट केशी॥

त्रिदल कमलोपरि शव

उपरि पादमेकेन स्थिता॥

प्रणमामि श्रीवैरोचनिय (श्रीवैरोचनीय)

त्रिनि नयना कुक्षि खट्वाङ्गे॥


(116)


150. (NC. not collect this song)


राग : भाष (विभास)               ताल : माथ


विश्वाभोजो चन्द्रोपरि मृत्यं (मध्य) स्थिता वज्रपर्याङ्कसन चतुर्वक्ता

पीत नील रक्तवर्णा पञ्चबुद्धमणिमुकुट धरा॥

ध्रू.॥ नमामि वागिश्वर (वागीश्वर) त्रिभुवन व्यापिता धर्मधातु मण्डल मणिण्डिता

देव देवादि देवेन संपुजिता अनेग (अनेक) ऋद्धिसिद्धि प्रसादां॥

प्रथम भूजमूल धर्मचक्रमुद्रा द्वितीय करधर कृपान पुस्तका

तृतीय भूज सक्तिवानं (शक्तिवानं) चापधरा चतुर्थहस्त वज्रघण्ट धारिता॥

नानारत्नाभरण वस्त्रादि भूषिता सर्वतथागत मणिकृत मेखरा (मेखला)

सर्वज्ञ ज्ञानगुणसागरा अनेग (अनेक) मुर्खसत्व (सुखसत्व) उधारनां॥

प्रणमामि धर्मधातु मञ्जुश्रीयं भव प्रशादेन (प्रसादेन) संबोधि (सम्बोधि)

संभावा (सम्भावा)

गावन्ति रत्नकुलिश गीत चरिता जन्म जन्म मोरुतुजु शरणा॥


151. (NC. not collect this song)


राग : कर्णाटि                   ताल : झाप


निलगयन (नीलगगण) श्वभिता (शोभिता) अगये (अङ्गे)

त्रिमुख त्रिलोचण (त्रिलोचन) समरस भाव्ये

ध्रू.॥ भाव-इ ले (रे) श्रीयोगाम्वर विरा (वीरा)

योगिनि ज्ञानेश्वरि करुण नाच-इ


(117)


डाकिनि देवि च-उसिक वोजनि (भोजनि)

मण्डल कोने विदिग स्थिता

वजि (वज्री) घोरि वेतालि चन्द्रालि (चण्डालि)

सिंधिनि व्याघ्रिनि जम्वुक उलुकिनि

डाकिनि द्विपिनि च-उसिक भोजनि

जन्म जन्म भय दुख विनासनि (विनाशनि)


152. (NC. not collect this song)


राग : ललित                   ताल : झाप


उल (उर) पञ्चन श्रीमञ्जुकुमारा

शशधरकिरण संकासन (संकाशन) देहा॥

ध्रू .॥ देव श्रीमञ्जुघोषन (घोषेन) त्रिभुवन व्यापिता

त्रिष्टा (तीक्ष्ण) खड्ग वर (वल) दहिन करधारि॥

वाम पुस्तक धर गुरुलाया (गुरुराया)

पद्म पत्रा संकासन (संकाशन) देहा॥

दहिन वामकर धनुसर (धनुशर) धारि

च-उमार (चतुरमार) दर्प्पन प्रहारा॥


(118)


जगत नेपाल नाथ प्रमुदित हृदया

अभिमत सुखफल वरप्रसादा॥


153. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी                   ताल : झाप (NC. omit)


पुर्व व्रह्मायनी हंसमारुढा कनकवर्ण अक्षसूत्र धारि

उत्तर माहेश्वरि वृष वाहने चन्द्रधवर (चन्द्रधवल) त्रिशुल हस्तं॥

ध्रू.॥ हूँ हूँ हूँ अष्टश्मशाने निलवार सहिता अष्टभैरव गणपति सहिता

अष्टऋद्धि अमरण मोक्षप्रदाता सुमरन्ते पापभयहरणं॥

पश्चिमे इन्द्रायनि हरित वाहनं कुङ्कुमवर्ण वर्ज (वज्र) हस्तं

दक्षिने वाराहि घनघोररूपं अङ्कुश सहितं महिषा शोभितं॥

ईशाने चन्द्रिका (चण्डीका) देवि धुमवर्ण कर्ति दण्ड वेताल डमरु सहिता

अग्नि दिगस्थ कौमारि मयुरवाहन रक्त राक्षस वर्ण शक्तिहस्तं॥

नैऋत्ये विष्णुवि (वैष्णवि) देवि गरुडवाहने श्यामवर्णा गदाचक्रधारि 

वायव्ये चामुण्डा देवि कंकाल सहिंता सिंहवाहन खड्गहस्तं॥


(119)


अष्टकुलनागा मेध्या दु-इ क्षान्ति क्षेत्रपाल नवोदुर्गा देवि

प्रणमामि देवि श्री-आराधियारे भुगति (भकति) मुगुति (मुकति) जस्ये 

सिद्धिकरियं॥


154. (NC. not collect this song)


राग : नाट                   ताल : जटि


चलि चरण (पुरण) चाप-इ  च-उमारा

अवदनु प्रतिमुख त्रिनयणि (त्रिनयनि)॥

ध्रू.॥ नाच-इ हेरुव नैरात्मा देवि

अष्टयोगिनि लैया परम मातरि॥

कृष्णवर्णा षोडश भूज फरणे

व्याघ्रचर्म्मधर पिङ्गलकेशा॥

चक्री कुण्डल कण्ठि लोचक (रोचक) मेखला

विभूषित भूषण सरिरालंकृता (शरीरालङ्कृता)॥

गाध पृयारस (पियारस) सहज आनन्दे

त्रिभुवन चराचर एकमुर्ति॥


155. (NC. 74 no. song)


राग : भास (विभास)                  ताल : माथ (NC. omit)


कुलिश पद्मभव जिनधातु विजं (वीजं)

निपमे (निरुपमे) धर्मधातुरूपं॥

पञ्चज्ञान पञ्चजिनधातुस्कन्धा सर्वबुद्धालयं भूपं


(120)


ध्रू.॥ नमामि श्रीशान्तिघट वजधातु (वज्रधातु) व्यापिता अनेग (अनेक) देवाशुर

(देवासुर) स्येविता (सेविता)॥

जत (जगत) व्यापित त्रिभुवनेक रूपं फरयि पञ्चतथागतरूपं चतुरं

परिमण्डित मण्डला विदिग तारादेवि संस्थिता॥

रम्वोदर (लम्वोदर) बोधिसत्वचतुरत्नं सहश्रि (सहस्र) श्व (स्व) स्व 

तथागतरूपं धरा

प्रणमामि वजसत्व (वज्रसत्व) त्रिभुवन नमिता मेरु सिखी (शिखी)

परिमण्डिता॥

श्रीयोगाम्वर पञ्चडाकिनि देवि पञ्चकुम्भेश्वरि आलिङ्गणा (आलिङ्गना)

नमामि ज्ञानेश्वरी त्रिभुवन जननी अनेग (अनेक) ऋद्धिसिद्धि प्रशादा

(प्रसादा)॥


(121)


156. (NC. not collect this song)


राग : धनाश्री                  ताल : जटि


प्रत्यालिधपद (प्रत्यालिणपद) सर्वाक्रान्ता खर्व लम्वोर (लम्वोदर) कृष्णरूपा

एकवदन त्रिय त्रिलोचना चतुभूज (चतुर्भूज) द्विपि चर्म कटिवसिनि

(वासिनि)॥

ध्रू.॥ देवि एकजटि त्रिजगत जननि भावाभाव रूपिनि

खड्ग करटि कपाल निरात्पर (निलोत्पल) वाम दहिन भूजधारि॥

अष्टनागाभरण विभूषित ग्रिव्ये रुद्र नरशिल (नरशिर) माला

चक्रि अक्षोभ्यो मिय मणि कुण्डल कण्ठि रत्नसम्भव॥

भूज लोचक (रोचक) वैलोचन (वैरोचन) कटिय अमोघसिद्धि पञ्चमुद्रा

विभूषिनि

शतगुरु (सतगुरु) प्रशादे (प्रसादे) गावन्ति भयंकर (अभयंकर) माया यम

सोप्रयमा॥

श्रि-उर्गतारणि (श्री-उग्रतारणि) सिल्यंगत (शिरंगत) धरिया रक्तविमोह

विद्यांविय (विध्वांसित)॥


157. (NC. not collect this song)


राग : त्रावलि (तारावलि)                  ताल : माथ


दिनमणि मण्डल वजात्रा (वज्राग्रा)

रक्तवर्ण त्रिनेत्र दिगम्वरा॥

ध्रू.॥ नमामि श्रीविद्याधरि

अनेग (अनेक) ऋद्धि सिद्धि वल प्रशादा (प्रसादा)॥

दहिने विन्दुर वामे वमि (वामा) सक्ति (शक्ति)

विचित्र पुष्पमाला हस्ताञ्जलि॥

मुक्तकेशा रे दिगाक्रान्ता

तुह्मदेवि जगत जननि॥


(122)


श्रीवज्रडाकिनि योगिनि मंडीत (मण्डित) शिंल्यधिता (शिरधृता)

गावनि (गावन्ति) सुरतवज्र मङ्गल गीता॥


158. (NC. not collect this song)


राग : भैरवी                   ताल : झाप


नमामि नमामि श्रीपुर्णचण्डश्वरि (पूर्णचण्डेश्वरी) ऋद्धि सिद्धि वलदायने

खड्ग वानाङ्कुश वज्रकर वरुण वाम चर्म धनु पाश धरा॥

ध्रू.॥ तेना हूँ हूँ हूँ तेना हूँ हूँ हूँ॥

घण्ट खट्वाङ्गक विन्दु पात्रेश्वश्वरि मुण्डमाला रत्नभूषिता

गौरवर्णरुण (वर्णारुण) त्रिनि त्रिनिनेत्र त्रिभुवन व्यापितां॥

सव्ये विनायक भैरव भावित सर्वभय भजितां (भञ्जितां)

वाममहापाल कृष्णा विरेश्वरं अष्टमहाभय मन्त्रहन्ता॥

अष्टक्षेत्रेश्वरि मत्रि (मातृ) मानाय किरुरुं वादनि श्रीचण्डिका

सिंह पृष्ठोपरि पद्मचण्डासन भक्तजन प्रतिपालिता॥


159. (NC. 27 no. song)


राग : मल्लार                   ताल : माथ


अह्वत (अयुत) हाथे चौराशि सिद्धा कायाकाय विहाला (विहारा)

कायाग्नि वायु भेदनि काया सर्व तिर्थी


(123)


ध्रू.॥ वोल गिरे लावु तुह्म योगिनि वन्धव सयर (सकल) विहारा

काया छदि रे (छाडि रे) आनमाने ते मोरु हस्तकपाला

काया चण्ड (चन्द्र) काया सूर्यकाया नक्षत्र माला

पण्डित सयार विहार पति यौ झुझुहु (वुझह्व) भिक्षु भराड्वा

काया गया कृत काया महावोद्धि (महावोधि) काया सर्व तिर्थो

अष्ट समुद्र विश्व कारुणा (करुणा) काया मेरुमण्डल

अष्ट संभ (संभव) प्रकृति तोरण शोभित नव दवारे (दुयारे)

चिय वजासनि (वज्रासनि) देवि थाविरे श्रीसंघ भराण्डा


160. (NC. 86 no. song)


राग : कर्णाटि                   ताल : झाप


रक्तपशु देहा द्विभूज एकास्या

नगर (नग्न) मकुट केश त्रिनिणयनं (नयनं)॥


(124)


ध्रू.॥ नमो देवि विद्याधरि देवि त्रिदशायनि व्यापिनि

ऋद्धि सिद्धि दायनि जग (जगत) जननि॥

झहिनै (दहिने) हिदिनि (ह्नादिनि) वामे पात्रधारि

विचित्रपुष्पमाला कलजो (कलशो) धारि॥

भानुमण्डलभाझ पोतर (पोतल) रुधि

नानारत्नाकार प्रेवेशित॥

भन-ई (भन-इ) रत्नावर्ज (रत्नवज्र) त्रितां (गीता)

शिवर्जदेवि (श्रीवज्रदेवी) लन (चरण) सोरु (मोरु) शरणा॥


161. (NC. 65 no. song)


राग : ललित                  ताल : झाप


पञ्चतथागत मयात्ररि (मेलिया रे) शमयाचारि (समयाचार्य ) पुव-इ स्यग

दशदिग दशवरि (दशवलि) आराधियारे समया आनन्द भरति हो-इ

ध्रू.॥ विरविरेश्वरा व-इथा चारे मण्डल मोहन विश्वफलिया

एकारा वलिदान देवि दानपतिय विघ्न निरवाणा (निर्वाणा)


(125)


पुर्ववैलोचन (वैरोचन ) दक्षिन (दक्षिण) रत्नसम्भव अमिताभ पश्चिम

वियापिता

उतर (उत्तर) अमोघसिद्धि माझे अक्षोभ्ये समयानन्द भति (भाति) हो-इ

समाधि श्रीचक्रसम्वर माझे श्रीकालचक्र हेवज्र (हेवज्र) कायवियापिता

जोगजोनिणि (योगयोगिनि) मेरि विन्दुजानं देवि समयानन्द भरतिन हो-इ

सिंहनाद वाजिया रे डमरु हिदे (हृदे) अष्टयोगिनि भरि दानपुण्य

जालंधरि (जालन्धरि) पूजा अवधुव ल-इया कर्णपाचरण भनति हो-इ


162. (NC. not collect this song)


राग : वराटि                  ताल : माथ


उदित भुवन कमलाश (कमलासन ) किरण ललित प्रचण्ड शोभा

निर्मल हृदया करुणामयनाथ देहि अभय वल प्रदाता॥

ध्रू.॥ तुह्म देवि यूग्येता त्रिभुवन व्यापित

जगत उधारि प्रणमामि वुग लोक्येश्वर॥

कनक रत्नमनिहार (मणिहार)

भूषित कनकसूत्र धारिता॥

वाम कमलधर वरद आमण (आभरण) सहजानन्द मुरुति

सुरनर यक्षगण पूजियारे॥

ललाचरण (ललितचरण?) शिल्येगत (शिरगत) धरिया

निमिल (तिमिर) गोर खल खलु मोक्ष॥

प्रदाता दर्शन पाप दुख हरणा

रक्तवर्ण मुख नयन सुलोचना॥

सर्वलक्षण सुभ (शुभ) संपुर्ण

रत्न खचित च्छत्र धारिया (धरिया) रे॥

लोकोश्वर (लोकेशर) मण्डल भुवन विजया॥


(126)


163. (NC. 43 no. song)


राग : मल्लार (NC. reads मल्लाद)              ताल : माथ (NC. omit)


भानुमण्डल माझे ज्वलित हूँकारा

आलि कालि दु-इ चाप-इ हेरुका॥

नमामि निलालम्व (निरालम्व) त्रिभुवन नाथा

वजवाराहि (वज्रवाराहि) आलिगण (आलिङ्गण) अद्वये॥

कृष्णवर्ण चर्तुवद (चर्तुवदन) त्रिनेत्रा

विश्वकुलिश अर्द्धचन्द्र जुत (युक्त)॥

डाकिनि रामा (लामा) खण्डारोहा

रूपिनि च-उ देवि क्रिदन्ति विलाशा॥

भूषिय (भूषित) षडमुद्रा च्छत्रिंश विरेश्वर

भन-इ अनुपमवज (अनुपमवज्र) हेरुकदासा॥


164. (NC. not collect this song)


राग : मधुमत (मधुमन्त)                  ताल : दुर्जमान


अगनित रुकं (लोकं) खवीदारण (खंविचरण) देवि विघ्नातक महाक्रोध 

लाया (राया)

सुरनर यक्षगण वंदित (वन्दित) देवगणेश्वर भुवन व्यापिता॥

ध्रू.॥ नमामि नमामि श्रीगणपति चरणे ऋद्धिसिद्धिबलदायकं

दुरित हरण शुभमङ्गल दाक (दायक) सर्वलक्षण पूजिता॥


(127)


गजमुख त्रिणनय (त्रिनय) लम्वकर्ण लंदर (लम्वोदर) नृत्याधिपा

ताद्रव (ताण्डव) पदवर (पदवल) अतिवर्ण देहा रक्तवर्ण महोज्वला॥

रत्नाभरण विभूषित देहा घाघरनाद मनारथा (मनोरथा)

कच्छपा गिरिनि निवासित गणपति विविधी (विविधि) पुरिता॥

जन्म जन्म मोरु गणपति सरणे (शरणे) अभिस्येक्ष (अभिषेक) सुख 

फलदायकं

शतगुरु (सतगुरु) चरणे (चरण) शिल्येगत (शिरगत) धरिया गावन्ति

सहजानन्द गीता॥


165. (NC. not collect this song)


राग : मालव                   ताल : माथ


पञ्चडाक डाकिनि विरविरेश्वरी

पञ्चचल श्रीचन्द्र महारोषन(ण)॥

ध्रू.॥ प्रणमामि श्रीचक्रसम्वल (श्रीचक्रसम्वर) श्रीहेरुव लाया (राया)

डाकिनि लामा खण्डारोहा रूपिनि॥

हेवज (हेवज्र) विराचल ज्ञानडाकिनि संग्ये (सङ्गे)

श्री-उग्रतारुणि स्येबक (सेवक) भये वर्जीगता (वज्रगीता)॥ 

जन्म मोरुतुंजु चरण शरणागतां

जोगाम्वर (योगाम्वर) गुह्ये ज्ञानडाकिनि नैरात्मा॥

बुद्धडाकिनि विद्याधरि भवभयहरणं॥


(128)



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